विरतिनी तीर्थभूमिमां,

 उपधान थया मनोहारा, 

धर्म सारथी उपवनमां,

 उपधान थया मनोहारा, 

मुज आतमना उमंगमां, 

हवे बनवाने अणगारा,

 मने पहेरावो प्यारी, 

मोक्षमाळा गुरुवर… 

तुज हाथे पहेरवी, 

मोक्षमाळा गुरुवर…(१)

 

गुरुवरना सत्-संगमां, 

जाण्युं रे साधुजीवन, 

आ दुनियाथी दूर रहीने, 

अजवाळु मारुं जीवन, 

साधनानी सोडम एवी, 

धरी प्रभु आणाने प्यारी,

 मैं तो साधुजीवन जेवी,

 करी आराधना रे प्यारी, 

मुज रोम राजी थई केवी,

 हवे बनवाने अलगारी, 

मने पहेरावो प्यारी…(२)

 

धर्मना रे सारथी प्यारा, 

देव-गुरुनो थयो संगम, 

देवना अंश बनीने जल्दी,

 थातुं छे तीरथ जंगम, 

 क्रियाने काउसग्ग करतां, 

तप त्यागे मलकाया, 

नवकारथी आतम रंगी, 

पौषध व्रते हरखाया,

 मुज आतमना आंगणीये, 

अवसरिया रुडा आया, 

मने पहेरावो प्यारी…(३)

 

संयमना सजवाने साज, 

मैं तो पहेरी माळा आज..

हवे लेवाने मुक्तिनो ताज,

 मैं तो पहेरी माळा आज..

मुज हरखे आतम राज,

 मैं तो पहेरी माळा आज..

करूं विरति “अंकित” आज,

 मैं तो पहेरी माळा आज…(४)

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