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Introduction

“Vinay Path” is a revered Jain hymn that embodies deep devotional sentiments and praises the virtues of the Jain Tirthankaras. This hymn guides the faithful towards spiritual enlightenment and devotion. In this blog post, we will present the lyrics of “Vinay Path” in Hindi, along with their meaning and significance.

Vinay Path Lyrics

Here are the inspiring lyrics of “Vinay Path” in Hindi:

१. इह विधि ठाडो होय के, प्रथम पढ़ै जो पाठ; धन्य जिनेश्वर देव तुम, नाशे कर्म जु आठ.

२. अनंत चतुष्टय के धनी, तुम ही हो सिरताज; मुक्ति-वधू के कन्त तुम, तीन भुवन के राज.

३. तिंहु जग की पीड़ा हरन, भवदधि-शोषणहार; ज्ञायक हो तुम विश्व के, शिव सुख के करतार.

४. हरता अघ अंधियार के, करता धर्म प्रकाश; थिरता पद दातार हो, धरता निजगुण रास.

५. धर्मामृत उर जल धिसों, ज्ञान भानु तुम रूप; तुमरे चरण सरोज को, नावत तिंहु जग भूप.

६. मैं बंदौ जिन देव को, कर अति निर्मल भाव; कर्म बंध के छेदने, और न कछू उपाव.

७. भविजन कों भव कूपतैं, तुम ही काढ़न-हार; दीन दयाल अनाथ पति, आतम गुण भंडार.

८. चिदानंद निर्मल कियो, धोय कर्म रज मैल; सरल करी या जगत में, भविजन को शिव गैल.

९. तुम पद पंकज पूजतैं, विघ्न रोग टर जाय; शत्रु मित्रता को धरै, विष निर-विषता थाय.

१०. चक्री खगधर इन्द्र पद, मिलैं आपतैं आप; अनुक्रम कर शिव पद लहैं, नेम सकल हनि पाप.

११. तुम बिन में व्याकुल भयो, जैसे जल बिन मीन; जन्म जरा मेरी हरो, करो मोहि स्वाधीन.

१२. पतित बहुत पावन किये, गिनती कौन करेव; अंजन से तारे प्रभु, जय जय जय जिन देव.

१३. थकी नाव भवदधि विषै, तुम प्रभु पार करेय; खेवटिया तुम हो प्रभु, जय जय जय जिन देव.

१४. राग सहित जग में रुल्यो, मिले सरागी देव; वीतराग भेटयो अबै, मेटो राग कुटेव.

१५. कित निगोद कित नारकी, कित तिर्यंच अज्ञान; आज धन्य मानुष भयो, पायो जिनवर थान.

१६. तुमको पूजैं सुरपति, अहिपति नरपति देव; धन्य भाग्य मेरो भयो, करन लग्यो तुम सेव.

१७. अशरण के तुम शरण हो, निराधार आधार; मैं डूबत भव सिंधु में, खेओ लगाओ पार.

१८. इन्द्रादिक गणपति थके, कर विनती भगवान; अपनो विरद निहारिकैं, कीजै आप समान.

१९. तुमरी नेक सुदृष्टि-तैं, जग उतरत है पार; हा हा डूबो जात हों, नेक निहार निकार.

२०. जो मैं कहहूँ और-सों, तो न मिटै उर भार; मेरी तो तोसों बनी, तातैं करौं पुकार.

२१. बंदों पांचों परम गुरु, सुर गुरु बंदत जास; विघन हरन मंगल करन, पूरन परम प्रकाश.

२२. चौबीसों जिनपद नमों, नमों शारदा माय; शिव-मग साधक साधु नमि, रच्यो पाठ सुखदाय.

मंगल मूर्ति परम पद, पंच धरौं नित ध्यान |
हरो अमंगल विश्व का, मंगलमय भगवान |१|

मंगल जिनवर पद नमौं, मंगल अरिहन्त देव |
मंगलकारी सिद्ध पद, सो वन्दौं स्वयमेव |२|

मंगल आचारज मुनि, मंगल गुरु उवझाय |
सर्व साधु मंगल करो, वन्दौं मन वच काय |३|

मंगल सरस्वती मातका, मंगल जिनवर धर्म |
मंगल मय मंगल करो, हरो असाता कर्म |४|

या विधि मंगल से सदा, जग में मंगल होत |
मंगल नाथूराम यह, भव सागर दृढ़ पोत |५|

Meaning and Interpretation

The “Vinay Path” hymn is a profound expression of devotion towards the Jain Tirthankaras. Here is a breakdown of the meaning of each verse:

  1. इह विधि ठाडो होय के, प्रथम पढ़ै जो पाठ…
    • Praises the Jain Tirthankaras for destroying the eight karmas and bringing liberation.
  2. अनंत चतुष्टय के धनी, तुम ही हो सिरताज…
    • Describes the Tirthankaras as the ultimate masters of infinite knowledge and the rulers of the three worlds.
  3. तिंहु जग की पीड़ा हरन, भवदधि-शोषणहार…
    • Acknowledges their power to alleviate the suffering of all beings and end the cycle of birth and death.
  4. हरता अघ अंधियार के, करता धर्म प्रकाश…
    • Highlights their role in dispelling ignorance and illuminating the path of righteousness.
  5. धर्मामृत उर जल धिसों, ज्ञान भानु तुम रूप…
    • Emphasizes their embodiment of the nectar of dharma and the sun of knowledge.
  6. मैं बंदौ जिन देव को, कर अति निर्मल भाव…
    • Expresses pure devotion and the intent to break free from the bondage of karma.
  7. भविजन कों भव कूपतैं, तुम ही काढ़न-हार…
    • Recognizes them as the saviors of beings from the pit of worldly existence.
  8. चिदानंद निर्मल कियो, धोय कर्म रज मैल…
    • Acknowledges their role in purifying souls by washing away the dirt of karma.
  9. तुम पद पंकज पूजतैं, विघ्न रोग टर जाय…
    • Believes that worshiping their lotus feet can remove obstacles and diseases.
  10. चक्री खगधर इन्द्र पद, मिलैं आपतैं आप…
    • Describes the attainment of high positions, like Indra, by their grace.
  11. तुम बिन में व्याकुल भयो, जैसे जल बिन मीन…
    • Expresses the soul’s restlessness without them, akin to a fish out of water.
  12. पतित बहुत पावन किये, गिनती कौन करेव…
    • Acknowledges the countless beings purified by their teachings.
  13. थकी नाव भवदधि विषै, तुम प्रभु पार करेय…
    • Sees them as the boatmen who can ferry beings across the ocean of existence.
  14. राग सहित जग में रुल्यो, मिले सरागी देव…
    • Describes the encounter with detached beings who eliminate attachment.
  15. कित निगोद कित नारकी, कित तिर्यंच अज्ञान…
    • Celebrates the precious human birth obtained after many ignorant existences.
  16. तुमको पूजैं सुरपति, अहिपति नरपति देव…
    • Praises the worship of the Tirthankaras by gods, humans, and all beings.
  17. अशरण के तुम शरण हो, निराधार आधार…
    • Recognizes them as the refuge and support for the helpless and abandoned.
  18. इन्द्रादिक गणपति थके, कर विनती भगवान…
    • Highlights the fervent prayers of gods and leaders to the Tirthankaras.
  19. तुमरी नेक सुदृष्टि-तैं, जग उतरत है पार…
    • Believes that their benevolent glance can save the world.
  20. जो मैं कहहूँ और-सों, तो न मिटै उर भार…
    • Expresses the heart’s burden that can only be alleviated by the Tirthankaras.
  21. बंदों पांचों परम गुरु, सुर गुरु बंदत जास…
    • Bows to the five supreme gurus and seeks their blessings.
  22. चौबीसों जिनपद नमों, नमों शारदा माय…
    • Pays homage to the 24 Tirthankaras and seeks knowledge and peace.
  23. मंगल मूर्ति परम पद, पंच धरौं नित ध्यान…
    • Focuses on the ultimate goal of peace and enlightenment.
  24. मंगल जिनवर पद नमौं, मंगल अरिहन्त देव…
    • Bows to the auspicious feet of the Tirthankaras and Arhats.
  25. मंगल आचारज मुनि, मंगल गुरु उवझाय…
    • Pays respect to the auspicious Acharyas and monks.
  26. मंगल सरस्वती मातका, मंगल जिनवर धर्म…
    • Honors the auspicious teachings of the Tirthankaras and their dharma.
  27. या विधि मंगल से सदा, जग में मंगल होत…
    • Believes in the auspicious path leading to peace and happiness.

Conclusion

The “Vinay Path” hymn is a powerful expression of devotion and reverence towards the Jain Tirthankaras. Its verses encapsulate the essence of Jain philosophy, highlighting the importance of purity, knowledge, and Moksha in Jainism. By reciting and reflecting on these verses, one can cultivate a deeper connection with the divine and progress on the path to spiritual enlightenment.

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