विमलगिरि वंदो रे…

(राग : अंतरजामी सुण…/ वीर! मने तारो )

श्री आदीश्वर अंतरजामी, जीवन जगत आधार,

 शांत सुधारस ज्ञाने भरियो, सिद्धाचल शणगार;

रायण रूडी रे, जिहां प्रभु पाय धरे, विमलगिरि वंदो रे,

देखत दुःख हरे, पुण्यवंता प्राणी रे, प्रभुजीनी सेवा करे. वि०॥१॥

 गुण अनंता गिरिवर केरा, सिध्या साधु अनंत,

वळी रे सिद्धशे वार अनंती, एम भाखे भगवंत;

भवोभव केरा रे, पातिक दूर करे. वि०॥२॥

 वावडियुं रस कुंपा केरी, मणि माणेकनी खाण,

 रत्नखाण बहु राजे हो तीरथ, एहवी श्री जिनवाण;

 सुखना स्नेही रे, बंधन दूर करे ।वि०॥३॥

 पांच कोटिशुं पुंडरीक सिध्यां, त्रण कोटिशुं राम,

 वीश कोटिशुं पांडव सिध्यां, सिद्धक्षेत्र सिद्धठाम;

 मुनिवर मोटा रे, अनंता मुक्ति वरे. वि०॥४॥

 एसो तीरथ ओर न जग में, एम भाखे श्री जिनभाण,

 दुर्गति कापे ने पार उतारे, वहालो आपे केवलनाण;

भविजन भावे रे, जे एहनुं ध्यान धरे. वि०॥५॥

 द्रव्य भावशुं पूजा करतां, पूजो श्री जिनपाय,

 चिदानंद सुख आतम वेदी, ज्योति से ज्योति मिलाय;

 कीर्ति एहनी रे, ‘माणेक’ मुनि करे. वि०॥६॥

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