वेष विरागींनो, मारे हैये धरवो छे, 

जिन आज्ञा पाळीने, मारे भवजल तरवो छे, 

ओ गुरु मने आपो, पावन दीक्षा,

 आ बाळ तमारो, करे छे प्रतीक्षा…(१)

 

तारो मारो साथ अनंत छे, 

मारे बनवुं साचा संत छे, 

तारा चरणे मारो अंत छे, 

प्रभु शुं कहुं? तारी भारी ज साची प्रीत छे,

 मारूं जीवन प्रभु संग-गीत छे, 

मारा मनडानो तुं मीत छे, 

प्रभु शुं कहुं? वेष विरागीनो…(२)

 

मम मुंडावेह, मम पव्वावेह, मम वेसं समप्पेह…

 

डूबे जीवन जहाज रे,

 मारे सजवो संयम साज रे,

 पेहरी जिन आज्ञा ताज रे, 

गुरु शुं कहुं? जवा मुक्तिपुरी काज रे, 

झालो गुरु मारो हाथ रे, 

आतमनो एक अवाज रे, गुरु शुं कहुं? 

वेष विरागींनो…(३)

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