Upadhyay Shri Yashovijayji – A Jain Legend
उपाध्याय श्री यशोविजयजी – जैन धर्म के अंतिम श्रुतपारगामी
उपाध्याय श्री यशोविजयजी, जिन्हें “अंतिम श्रुतपारगामी” कहा जाता है, जैन धर्म के प्रसिद्ध विद्वान थे। उत्तर गुजरात के कनोडा गांव में जन्मे, उन्होंने बचपन से ही अद्वितीय बुद्धिमत्ता और धर्म-निष्ठा का परिचय दिया। मात्र पाँच वर्ष की उम्र में, उन्होंने भक्तामर स्तोत्र का पाठ करके अपनी अद्भुत स्मरण शक्ति का प्रमाण दिया।
संस्कृत, प्राकृत और गुजराती में 100 से अधिक ग्रंथों के लेखक, श्री यशोविजयजी को “न्यायाचार्य” और “न्यायविशारद” जैसे उपाधियों से सम्मानित किया गया। उनकी गहन विद्वता ने जैन और गैर-जैन विद्वानों का सम्मान अर्जित किया। उनका जीवन आध्यात्मिक और शैक्षणिक उत्कृष्टता का प्रतीक है।
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Upadhyay Shri Yashovijayji – The Last Knower of Jain Canonical Scriptures
Upadhyay Shri Yashovijayji, known as the “antim shrutpargami” (the last knower of Jain scriptures), was a revered Jain scholar. Born in Kanoda, North Gujarat, he exhibited extraordinary intellect and devotion from a young age. At just five, he recited the Bhaktamar Stotra verbatim, showcasing his exceptional memory.
With over 100 works in Sanskrit, Prakrit, and Gujarati, Shri Yashovijayji gained titles such as “Nyayacharya” and “Nyayavisharad.” His deep knowledge earned respect from Jain and non-Jain scholars alike. His life exemplified the pursuit of spiritual and academic excellence.
This story of dedication and wisdom inspires readers to embrace Jain values.
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