सुमति जिनेश्वर साहिब शोभता,

सुमति करण संसार सुमति जप्यां

थी सुमति बधै घणी, सुमति सुमति दातार… सुमति (१)

ध्यान सुधारस निरमल ध्याय नैं,

पाम्या केवल नाण बाण सरस वर जन बहु तारिया,

तिमिर हरण जगभाण… सुमति (२)

फटिक सिंहासण जिनजी फाबता,

तरु अशोक उदार छत्र चमर भामंडल

लकतो, सुर दुन्दुभि झिणकार… सुमति (३)

पुष्प-वृष्टि दिव्य-ध्वनि दीपती,

साहिब जग सिणगार अनंत ज्ञान दर्शन

बल चरण ही, द्वादश गुण श्रीकार… सुमति (४)

वाण अमी सम उपशम रस भरी,

दुर्गति मूल कषाय शिव सुखनां अरिं शब्दादिक कह्या

 जग तारक जिनराय… सुमति (५)

अंतरयामी! शरणै आपरै,

हूँ आयो अवधार जाप तुमारो निश दिन संमरूं,

शरणागत सुखकार… सुमति (६)

संवत उगणीसै सुदिपख भाद्रवै,

बारस मंगलवार सुमति जिनेश्वर तन मन स्यूं रट्या,

आनंद उपनो अपार… सुमति (७)

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