JAIN STUTI 1 (Hindi Lyrics) Jain Stavan

 

सीझ्या प्रभु मुज काज सघडा आप दर्शन योग थी,

मंगल बन्यो दिन आज मारो आप प्रेम प्रयोग थी,

धर्ती ह्रदयनी नाथ मारी आप शरणे उपशमी,

रत्नत्रयी वर्दान मांगु नाथ तुज चरणे नमी… |

गिरुआ गुणो तारा केटला गुण सागरो ओछा पडे,

रुप लावण्य तारु केटलु रुपसागरो पाछा पडे,

सामर्थ्य एवु अजोड छे सहु शक्तिओ झांखी पडे,

तारा गुणानुवादमां मा शारदा पाछी पडे …|

झिलमिल थता दिपक तणा अज्वासना पडदा पडे,

पल पल अने हर क्षण प्रभु तु न​वन​वा रुपो धरे,

हे विश्व मोहन निरखता निमेश नयने आपने,

त्रण जगत न्योछावर करु तारी उपर थातु मने… |

मुज ह्रदयना धबकारमा तारु रटण चाली रहो,

मुज श्वास ने उछ्वास मा तारु स्मरण चाली रहो,

मुज नेत्रनी हर पलकमा तारु ज तेज रमी रहो,

ने झींदगी नी हर पळोमा प्राण तु ही मुज बनी रहो… |

ना तेज हो नयने परंतु निर​विकार रहो सदा,

हैये रहो ना हर्ष किंतु सदविचार रहो सदा,

सौंदर्य देहे ना रहो पण शीलकार रहो सद​,

मुज स्मरण मा हे नाथ तुज परोमपकार रहो सदा …|

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