शुभभाव की बौछार है, तप-त्याग का त्यौहार है,

 गुरुदेव का उपकार है, पाया है संयम साज… 

बना हूँ आज मैं मुनिराज….[१]

 

यहाँ विश्व ही परिवार है, करूणा-दया और प्यार है, 

सागर यदि संसार है, तो संयम है जहाज़ है, 

यहाँ कर्म को ललकार है, महासत्त्व का टंकार है, 

भीतर का ये हुंकार है, अब पाना है स्वराज, 

बना हूँ आज मैं मुनिराज…[२]

 

दिल में चिन्मय का सार है, ये ‘संघ-हीर’ अवतार है,

 दिल में गुण नेमि सार है, ये ‘संघ-हीर’ अवतार है, 

नेमि-प्रेमी की पुकार है, मुझे तारना जिनराज ! 

बना हूँ आज मैं मुनिराज…[३] 

 

हो झुमे रे! अंग-अंग, जैसे दरिया तरंग,

 पाया रजोहरण हो! गुरुवर के संग-संग, 

संयम का श्वेत रंग, छाया है तन-मन-आतम हो ![४]

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