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Introduction

The Shri Chandraprabhu Chalisa is a highly revered hymn dedicated to Lord Chandraprabhu, the eighth Tirthankara in Jainism. This Chalisa, consisting of forty verses, is chanted by devotees to seek the blessings and guidance of Lord Chandraprabhu. In this blog post, we will delve into the lyrics of the Shri Chandraprabhu Chalisa, interpret its meaning, and appreciate its significance in Jain worship.

“Shri Chandraprabhu Chalisa” Lyrics

Here are the revered verses of the Shri Chandraprabhu Chalisa:

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूँ प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।।

सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकर।
चन्द्रपुरी के चन्द्र को, मन मंदिर में धार।।

।। चौपाई ।।

जय-जय स्वामी श्री जिन चन्दा, तुमको निरख भये आनन्दा।
तुम ही प्रभु देवन के देवा, करूँ तुम्हारे पद की सेवा।।

वेष दिगम्बर कहलाता है, सब जग के मन भाता है।
नासा पर है द्रष्टि तुम्हारी, मोहनी मूरति कितनी प्यारी।।

तीन लोक की बातें जानो, तीन काल क्षण में पहचानो।
नाम तुम्हारा कितना प्यारा, भूत प्रेत सब करें निवारा।।

तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ, अष्टम तीर्थंकर कहलाओ।
महासेन जो पिता तुम्हारे, लक्ष्मणा के दिल के प्यारे।।

तज वैजंत विमान सिधाये, लक्ष्मणा के उर में आये।
पोष वदी एकादश नामी, जन्म लिया चन्दा प्रभु स्वामी।।

मुनि समन्तभद्र थे स्वामी, उन्हें भस्म व्याधि बीमारी।
वैष्णव धर्म जभी अपनाया, अपने को पण्डित कहाया।।

कहा राव से बात बताऊँ, महादेव को भोग खिलाऊँ।
प्रतिदिन उत्तम भोजन आवे, उनको मुनि छिपाकर खावे।।

इसी तरह निज रोग भगाया, बन गई कंचन जैसी काया।
इक लड़के ने पता चलाया, फौरन राजा को बतलाया।।

तब राजा फरमाया मुनि जी को, नमस्कार करो शिवपिंडी को।
राजा से तब मुनि जी बोले, नमस्कार पिंडी नहिं झेले।।

राजा ने जंजीर मंगाई, उस शिवपिंडी में बंधवाई।
मुनि ने स्वयंभू पाठ बनाया, पिंडी फटी अचम्भा छाया।।

चन्द्रप्रभ की मूर्ति दिखाई, सब ने जय – जयकार मनाई।
नगर फिरोजाबाद कहाये, पास नगर चन्दवार बताये।।

चन्द्रसैन राजा कहलाया, उस पर दुश्मन चढ़कर आया।
राव तुम्हारी स्तुति गई, सब फौजो को मार भगाई।।

दुश्मन को मालूम हो जावे, नगर घेरने फिर आ जावे।
प्रतिमा जमना में पधराई, नगर छोड़कर परजा धाई।।

बहुत समय ही बीता है कि, एक यती को सपना दीखा।
बड़े जतन से प्रतिमा पाई, मन्दिर में लाकर पधराई।।

वैष्णवों ने चाल चलाई, प्रतिमा लक्ष्मण की बतलाई।
अब तो जैनी जन घबरावें, चन्द्र प्रभु की मूर्ति बतावें।।

चिन्ह चन्द्रमा का बतलाया, तब स्वामी तुमको था पाया।
सोनागिरि में सौ मन्दिर हैं, इक बढ़कर इक सुन्दर हैं।।

समवशरण था यहाँ पर आया, चन्द्र प्रभु उपदेश सुनाया।
चन्द्र प्रभु का मंदिर भारी, जिसको पूजे सब नर – नारी।।

सात हाथ की मूर्ति बताई, लाल रंग प्रतिमा बतलाई।
मंदिर और बहुत बतलाये, शोभा वरणत पार न पाये।।

पार करो मेरी यह नैया, तुम बिन कोई नहीं खिवैया।
प्रभु मैं तुमसे कुछ नहीं चाहूँ, भव – भव में दर्शन पाऊँ।।

मैं हूँ स्वामी दास तिहारा, करो नाथ अब तो निस्तारा।
स्वामी आप दया दिखलाओ, चन्द्रदास को चन्द्र बनाओ।।

।।सोरठ।।

नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार, सोनागिर में आय के।।

होय कुबेर सामान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।।

जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय नमः

Meaning of “Shri Chandraprabhu Chalisa”

The Shri Chandraprabhu Chalisa is a devotional hymn that venerates Lord Chandraprabhu and celebrates his divine qualities and life events. The key aspects highlighted in this Chalisa are:

  1. Divine Salutation: The hymn begins with a respectful salutation to Lord Chandraprabhu and acknowledges the guidance and blessings of revered teachers and ascetics.
  2. Divine Attributes: It praises Lord Chandraprabhu’s omniscience and his ability to perceive all three realms and times. His compassionate nature is highlighted, noting how his name alleviates all fears and troubles.
  3. Life and Birth: The Chalisa recounts the significant events of Lord Chandraprabhu’s life, including his birth in Chandrapuri and his divine attributes as the eighth Tirthankara.
  4. Spiritual Achievements: The hymn reflects on Lord Chandraprabhu’s spiritual achievements and his role in guiding his followers. It describes his renunciation of worldly life and his journey toward enlightenment.
  5. Miracles and Legends: It narrates the miracles associated with Lord Chandraprabhu, including his ability to cure ailments and the divine manifestations of his image.
  6. Devotional Appeal: The Chalisa concludes with a devotional appeal for divine intervention and blessings. It emphasizes the hymn’s power to bring prosperity and alleviate suffering for devotees.

Significance of the “Shri Chandraprabhu Chalisa”

The Shri Chandraprabhu Chalisa holds a special place in Jain devotional practices:

  • Spiritual Connection: Reciting this Chalisa helps devotees connect deeply with Lord Chandraprabhu, seeking his blessings for wisdom and spiritual progress.
  • Divine Guidance: The hymn serves as a guide for understanding the virtues and teachings of Lord Chandraprabhu, providing insights into spiritual living.
  • Cultural Importance: It is a vital part of Jain worship, reflecting the cultural and spiritual heritage associated with Lord Chandraprabhu.

Conclusion

The Shri Chandraprabhu Chalisa is not just a hymn but a profound spiritual practice that enhances devotion and understanding of Lord Chandraprabhu. By engaging with its lyrics and meanings, devotees can embark on a path of spiritual enrichment and divine connection.

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