शिखरोथी सुंदर, शाश्र्वत गिरि पर,

ऋषभनी छाया, छायी रही छे,

 हवानी साथे, सिध्दोनी गाथा,

रायणनी शाखा, गाई रही है…(1)

 

श्रमणो ज्यां, सिध्दि वर्या छे,

मारा स्वामी, समोसर्या छे,

 सदीओथी कल-कल वहेती,

शेत्रुंजी नदी अहीं कहेती, ऋषभकथा…

ऋषभना राजमां, सिध्दगिरि राजमां,

झूमवुं मारे आ दादाना दरबारमां…(2)

 

मरुदेवानंद निहाळवा तमे,

संघ लईने आवो,

भवयात्राने अहीं टाळवा तमे,

 जात्रा करवा आवो…(3)

 

ज्यां पूर्व नव्वाणुं पधार्या,

मारा नाथजी, ए आदिने विनवुं,

 के मारो झालो हाथजी,

ऋषभना राजमां, सिध्दगिरि राजमां,

झूमवुं मारे आ दादाना दरबारमां…(4)

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