संसारने वोसीरामि केहशे,

प्रभुनो वेश मळी जाशे…

 

हे आजे मन-गमता ओरता पूरा थाशे,

संयमनुं मुहूर्त मळी जाशे, तुं जो…

प्रभुनो वेश मळी जाशे… (१)

 

हे आज भवोभवना शमणाओ साकार

थाशे,संयमनुं मुहूर्त मळी जाशे,

तुं जो…प्रभुनो वेश मळी जाशे…. (२)

 

चंदनानो वेश पहेरी, रहेवुं गुरु संगे,

तप-साधना करी, रंगावुं संयम रंगे… (३)

 

घरनी लाडली लेवा आवी मुहूर्त आज,

 हैयामां हर्ष न माय रे..

संसारी सगपनने छोडीने मारी लात,

 करी रजोहरणथी सगाई रे…

के लागे स्वार्थी आ संसारनां, बंधन भारी,

छोडी चाली हुं तो, पंचम पदे स्थाई,

संयमनुं मुहूर्त मळी जाशे, तुं जो…

 प्रभुनो वेश मळी जाशे… (४)

 

 निरखुने आंखोमां अमी छलकाय रे,

 एवो छे वेश प्रभु वीरनो..

 संयम पंथे विचरवा सदाय रे,

मनडानां मोर आज नाचे..

के तप-जप-त्याग-साधनामां,

 राखीश जीवन, गुरु वचनोनां फूलोथी,

बांधीश उपवन, संयमनुं मुहूर्त मळी जाशे,

 तुं जो… प्रभुनो वेश मळी जाशे… (५)

 

मेहानो महात्याग थाशे, तुं जो…

 के हवे रत्नचंद्रसूरि हाथे ओघो मळशे,

संसारने वोसिरामि केहशे, तुं जो…

चारित्र उदय हवे थाशे… (६)

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