प्रभु! तुं मारा अंतरमां,

सुकृतना भाव जगावे, 

ने ऐने पूरा करवानी,

शक्ति पण प्रगटावे, 

मारग मुजने तुं बतलावे,

मंझिले मुजने पहोंचावे,

 आंगळी मारी पकडीने तुं, 

तळीये थी शिखरे लई जावे, 

माटे भीना हैये मारा,

नाथ कहुं छूं तुजने, 

तारो आभार छे… घणो आभार छे… 

कर्या उपकार ते मुज पर,

एनो आभार छे…(१)

 

सुखने मांगे, दुःखथी भागे,

एवुं मारूं मन छे, 

साधनोमां शाता लागे,

ने दुःखमां अकळामण छे, 

मननी आ वृत्ति बदलावे,

आसक्तिने दूर करावे, 

(आंगळी मारी पकडीने तुं…

एनो आभार छे…)(२)

 

सत्वविहोणो, धैर्यविहोणो,

विघ्नोथी गभराऊं,

 सिद्धि मळशे केम मने ए,

चिंताथी मुंझाऊं,

 विकल्पोने दूर करीने,

घट-घटमां स्थिरता फेलावे, 

(आंगळी मारी पकडीने तुं …

एनो आभार छे…)(३)

 

 भाव विनानी हैयानी

सुक्की हती आ धरती, 

तारा वचनो ए एने

भावोथी करी छलकाती, 

अशक्यनो आरंभ करावे,

शातानो संचार करावे,

 (आंगळी मारी पकडीने तुं…

एनो आभार छे…)(४)

 

शत्रुंजय ज्यां तीर्थेश्वर छे,

आदिदेव ज्यां अलवेसर छे,

राजरत्नसूरि गुरुवर त्यां,

मासक्षमणमां अग्रेसर छे,

सौनी नैया पार करावे,

धर्मनो तुं उदय करावे,

कृपाना किरणो रेलावी,

“प्रशमनो” तुं वास करावे,

माटे भीना हैये मारा,

नाथ कहुं छुं तुजने,

तारो आभार छे…

घणो आभार छे…

कर्या उपकार ते मुज पर,

एनो आभार छे…(५)

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