(तर्ज:- झण्डा ऊंचा रहे हमारा)

 

पर्युषण है पर्व हमारा,

सब जग यह एक सहारा ॥ टेक ॥

 

अमित समय से यह चला आया,

मनुज मात्र इसमें सुख पाया,

आदी देव ने इसे पसारा ॥१॥

 

सुरवर भी आमोद मनाते,

अष्टादिक प्रभु के गुण गाते,

यह अनादि से चलती धारा ॥२॥

 

महावीर ने यह बतलाया,

साधक जनता ने अपनाया,

दुख में डुबा था जग सारा ॥३॥

 

समवसरण में प्रभु ने गाया,

पर्व सभा के मन में भाया,

बही सुधामय प्रभु की धारा ॥४॥

 

राग द्वेष कलुषित निज मन को,

इसमें निर्मल करो निज मन को,

मन का होवे तभी सुधारो ॥५॥

 

आओ भाई सब मिल आओ,

पूर्ण प्रेम से इसे मनाओ,

चमके अपना जैन सितारा ॥ ६॥

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