ओ नेमि निरंजन, शिवादेवी नंदन,
राजुल मन वसियो, नेमि प्रीतम प्यारो,
श्यामळीयो मारो, मने सौथी व्हालो,
गिरनार शणगारो,तुं छे दुनिया मारो..(१)
तारी अभिषेकनी धारा,
ए नेमनाथना नारा,
नर अने नरेन्द्रना वारा…
नथी मान के अहंकारा,
मुख पर सहजनी धारा,
धन्य छे ए दृश्य जोनारा….(२)
ओ गिरनारी, तुं छे अविनाशी,
विनाशी तणो हुं, थयो छूं आशी,
बांधी छे मैं तो, कर्मोनी राशि,
मांगु प्रभुजी, दर्शन अविनाशी….(३)
नेमि नामनुं अंजन, करे निरंजन,
करजो मुज हृदयामां, प्रेमनुं सिंचन,
हुं टीपां माटे तरस्यो,
ते दरियो आखो पीरस्यो,
गुरु तणा वचनोथी, मने स्पश्योंं…(४)
सर्वत्र परमनुं होवुं, बस तारा थी ए
जोवुं हुं अने मारा पणानुं खोवुं…(५)
ओ गिरनारी, तुं छे अविकारी,
पशुओनी वातो, ते सर्व स्वीकारी,
जीव मात्रमां रहेलुं, शिव तत्व निहारी,
तव द्रष्टि आपो, ए अरज अमारी…(६)
दर अमावसनी राते, श्री अंबिका देवी
पथारे, नेमने प्रदक्षिणा आपे…(७)
ओ गिरनारी, तुं छे वितरागी,
तारा अभिषेक, पर जाउ ओवारी,
ने संध्या समये, ए आरती तारी,
ए द्रश्य जुहारी, भीनी अश्रु अमारी…(८)