नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्रं अधीशं,
शतेन्द्रं सु पुजै भजै नाय शीशं ।
मुनीन्द्रं गणीन्द्रं नमे जोड़ि हाथं,
नमो देव देवं सदा पार्श्वनाथं ॥१॥

 

गजेन्द्रं मृगेन्द्रं गह्यो तू छुडावे,
महा आगतै नागतै तू बचावे ।
महावीरतै युद्ध में तू जितावे,
महा रोगतै बंधतै तू छुडावे ॥२॥

 

दुखी दुखहर्ता सुखी सुखकर्ता,
सदा सेवको को महा नन्द भर्ता।
हरे यक्ष राक्षस भूतं पिशाचं,
विषम डाकिनी विघ्न के भय अवाचं॥३॥

 

दरिद्रीन को द्रव्य के दान दीने,
अपुत्रीन को तू भले पुत्र कीने ।
महासंकटों से निकारे विधाता,
सबे सम्पदा सर्व को देहि दाता ॥४॥

 

महापोंन को वज्र को भय निवारे,
महपौन को पुंजतै तू उबारे ।
महाक्रोध की अन्नि को मेघधारा,
महालोभ शैलेश को वज्र मारा ॥५॥

 

महामोह अंधेर को ज्ञान भानं,
महा कर्म कांतार को थौ प्रधानं।
किये नाग नागिन अधो लोक स्वामी,
हरयो मान दैत्य को हो अकामी ॥६॥

 

तुही कल्पवृक्षं तुहीं कामधेनं,
तुहीं दिव्य चिंतामणि नाग एनं ।
पशु नर्क के दुःखतै तू छुडावे,
महारवर्ग में मुक्ति में तू बसावे ॥७॥

 

करे लोह को हेम पाषण नामी,
रटे नाम सो क्यों ना हो मोक्षगामी ।
करै सेव ताकी करै देव सेवा,
सुने बैन सोही लहे ज्ञान मेवा ॥८॥

 

जपै जाप ताको नहीं पाप लागे,
धरे ध्यान ताके सबै दोष भागे।
बिना तोहि जाने धरे भव घनेरे,
तुम्हारी कृपातै सरै काज मेरे ॥९॥


• दोहा •


गणधर इंद्र न कर सके,
तुम विनती भगवान ।
घानत प्रीति निहार के,
कीजे आप सामान ॥१०॥

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