मारा चित्तमां छवि तारी,

 तारा सामे आ दुनिया खारी, 

तारा आलंबनथी हुं जीवुं जीवन,

 तारा आशिषोथी थाउं पावन…(१)

 

जोउं वीरने तुझमा गुरुमाँ, 

मारी व्हाली ओ गुरुमाँ… 

नानो बाल हुं तारो गुरुमाँ,

 बनु व्हालो हुं तारो गुरुमाँ, 

गुरुम… ओ गुरुमाँ…(२)

 

तारी शुं वातो हुं कहुं, मारा रोमने श्वासोमां तुं, 

तारी यादोमां हुं रहुं, तारो सथवारो हुं चाहुं, 

झाली मारो हाथ हवे, परम सुधी लईजा मने, 

तारो विरह पण हवे, लागे वनवास मने,

 तारी हाजरीमां, अनुभवु हुं वीरने, 

दर्शन तारुं मनमां रमे छे, गमे छे… 

जोउं वीरने तुझमा गुरुम…(३)

 

 देव सम आभा छे तारी, पळमां प्रसन्न करनारी, 

समर्पण तुझमां जे वहे, एवं मुझ आतममां खीले,

 एबी मारी आश छे, साचुं विश्वास छे, 

केवी आ लागनी, बस तारी मांगनी,

 वारस तारो बनीने, तुझ चरणे रहेतुं छे मारे, गुरुमाँ… 

जोउं वीरने तुझमा गुरुमाँ…(४)

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