मनमें विरती का ध्यान करे,

गुरुवचन सिर पाघ धरे,

 दिलमें संयम का भाव धरी,

अब भव्य संयमनाद करे…(१)

 

आतम उसका है साथी,

मोहनगर का है त्यागी,

 विचरे बनके वैरागी…

 संयम पथका है राही,

मोक्ष सुख उसका भावी,

 स्पर्शे जिम आतम वितरागी… 

कर्मों पे अब वार करे,

आतम से मुलाकात करे, 

दिलमें संयम का भाव धरी,

अब भव्य संयमनाद करे…(२)

 

मेरे भव्य गुरुवर संग,

चलु महर्षि पथ पर, 

तत्वज्ञाता, गुरुभ्राता,

मेरे परम हितकर…(३)

 

गोयम का वो भावधरी,

पंच महाव्रत साथ ग्रही, 

वीर संगे निवास करी… 

स्थूल धन्ना सम हो विरती,

हंस भव्य सम हो कीर्ति,

वीर वचन से वो मिलती…

 मात-पिता के भाग बडे,

जब संघ चतुर्विध साथ खडे, 

दिलमें संयम का भाव धरी,

अब भव्य संयमनाद करे…(४)

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