कोई इच्छा नहीं, कोई आशा नहीं, गुरु आदेशे वैराग्य यात्रा,

संकल्पो नहीं, विकल्पो नहीं, समभावे सदा छे पवित्र,

जिनशासननो अणगार बनी, करे मोह सामे पडकारा,

वीतरागींना पंथे जई, करे संयमना जयकारा…. 

ओघो लई हाथमां नाचवा, हवे चाल्यो वैरागी….(१)

 

हां वीरना मार्गे, ए तो सिंह बनीने चाले,

 हां कष्ठटोनी वाते, ए तो पाछळे कदीना भाळे, 

समतामां लायलीन बने, पंच महाव्रत पाळे, 

सद्गुणोनी यात्रामां, गुरुनो हाथ ए झाले…

 ए तो भूली गयो संसार… 

ओघो लई हाथमां नाचवा, हवे चाल्यो वैरागी….(२)

 

आनंद भर्यो छे अनहद, गुरुकुल वासे,

 स्वाध्यायना योगे हुं पहोंचीश, प्रभुनी पासे, 

जाग्यो छे मारो आतम, श्वासें-श्वासें,

 भवभ्रमणनो भय नहीं मनमां, मुक्ति थाशे, 

युगो-युगोथी करूं हुं साधना, वितरागी क्यारे बनुं, 

दुष्कर्मोथी अजित बनीने, साचो विनीत बनुं, 

ओघो लई हाथमां नाचवा, हवे चाल्यो वैरागी… 

सिंह बनी मोहने जितवा, हवे चाल्यो संवेगी…(३)

 

तुं धर्मतणो अवतार, तुं त्रिभुवननो आधार,

तुं ही सत्त्वतणो दातार, तुं ही तत्त्वतणो जलधार,

तुं कर विरति श्रृंगार, तुझ पर मारा छे आशिषघार,

मारा लाल, ताराथी मारो भवपार,

मोह सामे जंग लडे तुं, शौर्य रसनो विजेता,

आवे लाखो विघ्नो पण तारे, विजय तिलक झळहळता…

सिंह बनी मोहने जितवा, हवे चाल्यो संवेगी…

सिंह बनी मोहने जितवा, हवे चाल्यो वैरागी….

ओघो लई हाथमां नाचवा, हवे चाल्यो वैरागी….(४)

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