करुणासागर जीवजीवन प्रभु वीरजी, 

अनंत गुणना धारक प्राण आधार जो,

 मुजने मूकी भवअटवीमां एकलो, 

आप सिधाव्या मुक्तिपुरीमां नाथ जो..(१)

 

सिद्ध बुद्ध अविनाशी पढ़ना भोगी छो, 

हुं छुं पामर मोहजाळमां मन्न जो,

 नाथ निहाळी आव्यो शरणे आपना, 

तार तार हो तारक देवढ्याळ जो…(२)

 

समवसरणमां बेसी अमीरस वाणीथी,

 ज्यारे करतां प्रभुजी भवी उपकार जो, 

ते वेळा हुं भाग्य विहोणो कई गति,

 जेथी न पाम्यो भवसागरनो अंत जो..(३)

 

ज्ञान अनंतु सुख अनंतु ताहरूं, 

क्षायिकभावे वर्ते छे तुज गुण जो,

 पण हुं पामी रमण करूं परभावमां, 

तो केम पामुं स्वरूप रमणनुं सुखजो..(४)

 

 सिद्धारथ कुल चरण प्रभु महावीरजी,

 त्रिशला नंदन त्रिजगवंदन नाथजो, 

मनमंदिरमां आवो प्यारा वीरजी,

 तुम विना आ सूनो छे दरबार जो…(५)

 

अनेक जीवने तार्या ते करूणानिधि, 

तो शुं मुजने मूकी जशो भगवान जो,

 मनोहर मुद्रा जोवा तलशे ताहरी,

“उदयरत्न” कहे द्यो दरिसण प्रभु मुज जो…(६)

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