जिनका जिनका था हमको सहारा,

वो मात-पिता और संघ हमारा, 

कर रहा हुं नमन, दिलसे नमन, चरणो में उनके,

 चाह रहा मेरा मन, कर दो कृपा, दे दु कुछ शासनको, 

कल्याण राह पे, हम तो निकल पडे, ये हृदय खोल के,

 गुरुजी कहे, विजय भव… श्री संघ कहे, विजय भव…(१)

 

अब अरिहंत ही प्यार बने, और आज्ञा-आधार बने, 

रहे याद सदा जिन-वचन-गहन, जीवन उजमाल बने, 

मेरे रोम-रोममें आशा हो, मेरी सांस-सांस अभिलाषा हो,

 हर कदम-कदम में, करुणा मेरी अपरंपार बने,

 अब ज्ञान-ध्यान, तप-त्याग मेरा, उजला सिंगार बने, 

है सत्य की सुगंध, आतम की रोशनी, 

है झगमगा रही रोशनी, श्री संघ कहे, विजय भव… (२)

 

साची-साची भक्ति, काबिली हो गई आज रे, 

गणि-पन्यास की, पदवी आ गई आज रे, 

जरूरी है तेरा बल, तुं शक्ति है दिव्य अचल,

 कृपा बरस रही है, पल पल पल, तुं निकल, तुं निकल,

शासनने तुजे आज पुकारा, करना है तुजे जय जयकारा,

 श्री संघ कहे, विजय भव…(३)

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