Jain Chandanbala Story : Inspiring Tale of Resilience and Faith in English and Hindi

Table of Contents

Chandanbala story in hindi

भगवान महावीर कि साधना का 12 वां वर्ष चल रहा था। प्रभु ने अपने ज्ञान से देखा और जाना कि मेरे कर्मों का विशाल पर्वत अब भी विद्यमान है, और समय कम है ऐसा जानकर प्रभु महावीर ने अपनी जिंदगी का सबसे कठोर अभिग्रह किया । प्रभु महावीर ने असंभव शर्तो के साथ अभिग्रह ग्रहण किया ।
प्रभु महावीर ने प्रतिज्ञा कि-

  1. मै उस स्त्री से भोजन भिक्षा स्वरूप लूंगा जिसका सिर मुंडा हुआ हो .
  2. पांवो मे बेडिया हो .
  3. तीन दिन से भूखी हो.
  4. दाता का एक पैर देहली के बाहर हो और एक पैर अंदर हो .
  5. भिक्षा देने के लिए उदड़ के बाकुले हो.
  6. भिक्षा का समय बीत जाने पर द्वार के बीच खड़ी हो.
  7. दासी हो
  8. राजकुमारी भी हो
  9. आंखो में आंसु के साथ चेहरे पर मुस्कान भी हो .
  10. यदि ऐसा संयोग होगा तो हि मै आहार ग्रहण करूंगा अन्यथा बिना भिक्षा लिये खाली हाथ हि लौट जाँऊगा ।

प्रतिज्ञा लेने के उपरांत भगवान महावीर रोज भिक्षा के लिए निकलते थे परंतु ऐसा योग मिलना भी तो असंभव था लोगों में कौतूहल मच गया प्रभु रोज भिक्षा के लिए जाते हैं, लेकिन खाली हाथ ही वापस लौट आते हैं, ऐसा करते हुए प्रभु को 4 माह बीत गए प्रभु ने इन 4 महीनों में अन्न का एक दाना तक नही खाया | लोगों को प्रभु के अभिग्रह का रहस्य पता लगता तो लगता भी कैसे ?

महासाध्वी चंदनबाला (वसुमति) चंपा नरेश दधिवाहन की पुत्री थी। एक बार की बात है कौशांबी नरेश ने चंपा पर आक्रमण कर दिया । काकमुख नामक एक सैनिक ने राज्य नगर को लूटा और महारानी धारणी और वसुमति (चंदनबाला) को बंदी बना लिया। मार्ग मे सैनिक कुदृष्टि से महारानी की तरफ देखता है, महारानी अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने शरीर को बचाने के लिए सैनिक के बुरे भावों को जानकर आत्महत्या कर लेती है।

महारानी के आत्महत्या करने के पश्चात राजकुमारी वसुमति (चंदनबाला) भी ऐसा ही करने की धमकी देती है, राजकुमारी के मनोभावों को देखकर सैनिक का ह्रदय पिघल जाता है। सैनिक राजकुमारी वसुमति को अपने घर ले जाता है परंतु उसकी पत्नी के मना करने पर उससे चौराहे (दास-विक्रय स्थल) पर बोली लगाकर बेच देता है और धन प्राप्त कर अपनी पत्नी को प्रसन्न कर देता है। नीलामी में सबसे अधिक बोली कौशांबी की गणिका लगाती है परंतु राजकुमारी उसके साथ जाने से मना कर देती है।

राजकुमारी की सुकुमिरता और सद्गुणों से प्रभावित होकर एक श्रमण उपासक एक धनी व्यापारी द्वारा वैश्या को अधिक धन देकर वसुमति को अपने साथ ले गया। धनवाह एक धर्म निष्ठ व्यक्ति था, धनवाह की पत्नी मूला एक शंकालु स्त्री थी। ऐसे ही उसने ऐसी दिव्य कन्या को अपने घर की दहलीज लांघते देखा अपनी शंकालु स्वभाव के कारण वह गलत समझ बैठी । धनवाह और वसुमति में संबंध पिता और पुत्री का था ।

1 दिन सेठ अपने कारोबार के लिए नगर से बाहर चला गया। इस अवसर का लाभ उठाकर उसकी पत्नी मुला ने अपने सभी नौकरों को छुट्टी दे दी और अवसर पाकर वह और वसुमति अकेले हो गए।
उसने अपनी ईर्ष्या के कारण वसुमति के सुंदर वस्त्र उतरवाकर पुराने वस्त्र डलवा दिए, उसके सुंदर केशो को कटवा दिया गया, उसे एक अंधेरे कमरे में बिठाकर बेडियो से बांध दिया गया। सेठ की पत्नी उसे अंधेरे कमरे में बिठाकर खुद नगर से बाहर चली गई ।

वसुमति 3 दिन से भूखी प्यासी थी। सेठ जब अपना कारोबार का कार्य पूरा कर अपने घर वापस आया तो उसने वसुमति को पुकारा घर के अन्य नौकर चाकर और अपनी पत्नी को भी पुकारा परंतु किसी की आवाज भी नहीं आई। आश्चर्य ! उसे घर के अंदर से अंधेरे कमरे में से हल्की सी आवाज आई उसने उससे दरवाजे को खोला तो उसने वसुमति (चंदनबाला) को वहां पाया ।

उसने वसुमति की भूखी प्यासी अवस्था देखकर भोजन के लिए इधर-उधर देखा कोई व्यवस्था ने देखकर उसने उड़द के बांकुले वसुमति को आहार के लिए दिए और बेड़ियां कटवाने के लिए लोहार को लाने के लिए बाजार चला गया ।

भगवान महावीर को निराहार रहे 5 महीने और 25 दिन बीत गए थे आज 26 वां दिन था । प्रभु के 6 महीने की प्रतिज्ञा में सिर्फ 5 दिन ही बाकी थे

प्रभु महावीर उस घर कि तरफ बढ़े जिस घर में वसुमति कैद थी, भगवान महावीर को अपनी तरफ आता देखकर वसुमति के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई। उत्साह भरी स्वरों में उसने प्रभु महावीर को भिक्षा के लिए कहा। हथकड़ी पड़े हाथों से उसने दीक्षा को बहराना चाहा उसका एक पांव देहली के अंदर और एक पांव देहली के बाहर था।

प्रभु महावीर ने अपने अभिग्रह कि सभी शर्तें लगभग पूरी हो गई थी, परंतु एक शर्त बाकी रह गई थी,प्रभु ने अपना अभिग्रह अधूरा मानकर मुड़ गए, प्रभु को मुड़ता हुआ देखकर वसुमति भाव विहल हो गई अपने दुर्भाग्य पर तरस खाकर वसुमति रो पड़ी प्रभु मेरे द्वार आए और खाली ही लौट गए।

चंदनबाला की आंखों में आंसू आ गए, प्रभु महावीर ने मुड़कर देखा और दान के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया चंदना की आंखों में आंसू थे और चेहरे पर प्रसन्नता का भाव था ।

चंदनबाला ने प्रभु महावीर को भिक्षा दी और स्वर्ग से देवताओं ने अहो दानम्, अहो दानम् का नाद किया। चंदनबाला के दान देने से प्रभु महावीर का 6 माह का अभिग्रह पूरा हो गया ।

यही वसुमति (चंदनबाला) भगवान महावीर के 36,000 साध्वी संघ कि प्रमुख बनी, भगवान महावीर का यह कदम दासता से मुक्ति की ओर पहला कदम था,भगवान महावीर ने उस समय स्त्री को धार्मिक अधिकार प्रदान किए और सबसे प्रथम साक्ष्य इतिहास में यही था। चंदनबाला भगवान महावीर की प्रथम शिष्या बनी वह जैन धर्म की प्रथम साध्वी थी। भगवान महावीर की तपस्या के प्रभाव से दास वर्ग को जीने का अधिकार मिल गया।

चंदनबाला धर्म पर आरूढ़ होकर कठिन तपस्या कि और सिद्ध – बुद्ध हो निवार्ण (मोक्ष) कि प्राप्ती कि ।

Chandanbala story in English

Lord Mahavir was in his 12th year of penance. Using his wisdom, he perceived that the towering mountain of his deeds still loomed, and time was scarce. Upon this realization, Lord Mahavir undertook the most arduous vow of his life. With conditions deemed impossible, he embraced the vow.

Lord Mahavir pledged that:

  1. He would accept alms from a woman with a shaven head.
  2. His feet would bear marks.
  3. He would remain hungry for three days.
  4. One foot of the donor should be outside the threshold while the other inside.
  5. He would carry a bowl made of udder to receive alms.
  6. When the time for alms-giving passed, he would stand between the doors.
  7. He would serve as a servant.
  8. He would even accept alms from a princess.
  9. Tears would fill his eyes while a smile adorned his face.
  10. Only if such circumstances aligned, he would consume food; otherwise, he would return empty-handed.

Following the vow, Lord Mahavir used to go out for alms every day, but it was impossible to receive alms. People were intrigued by this. Lord Mahavir used to go out for alms every day, but returned empty-handed, and while doing so, four months passed. In these four months, Lord Mahavir did not even eat a grain of food. How did people understand the mystery of Lord’s refusal?

Mahasadhvi Chandanbala (Vasumati) was the daughter of King Champ of Kosambi. Once, King Champ attacked Chandanbala. A soldier named Kakmukh plundered the kingdom and captured Queen Dharani and Vasumati (Chandanbala) as prisoners. On the way, the soldier looks towards the queen with an evil eye, seeing the soldier’s bad intentions to save her chastity, the queen commits suicide by knowing them.

After the queen’s suicide, Princess Vasumati (Chandanbala) also threatens to do the same. Seeing the princess’s attitude, the soldier’s heart melts. The soldier takes Princess Vasumati to his home, but upon his wife’s refusal, he sells her by auctioning her at the chowk (slave-market) and earns money to please his wife. The highest bid in the auction is placed by the courtesan of Kosambi, but the princess refuses to go with her.

Impressed by the princess’s humility and virtues, a Jain ascetic takes Vasumati (Chandanbala), giving more wealth to the rich merchant by giving more wealth to the prostitute. Dhannath was a religious person, Dhannath’s wife Moola was a suspicious woman. Likewise, she misunderstood the divine girl because of her suspicious nature. The relationship between Dhannath and Vasumati was like that of father and daughter.

One day the merchant went out of the city for his business. Taking advantage of this opportunity, his wife Moola gave leave to all his servants and taking advantage of the opportunity, she and Vasumati were left alone. Taking advantage of her jealousy, Moola got Vasumati’s beautiful clothes removed and got her old clothes worn, her beautiful hair was cut, and she was tied with ropes from the beds and put in a dark room. The merchant’s wife left Vasumati alone in a dark room and went out of the city herself.

Vasumati had been hungry and thirsty for three days. When the merchant completed his business and returned home, he called for Vasumati, other servants, and his wife, but no one’s voice was heard. Surprisingly, he heard a faint voice coming from inside the house, so he opened the door and found Vasumati (Chandanbala) there.

Seeing Vasumati’s hungry and thirsty condition, he looked around for food arrangements. Upon seeing no arrangement, he gave Vasumati a bowl made of udder for food and went to the market to get the ropes cut.

Lord Mahavir had been fasting for 5 months and 25 days. Today was the 26th day. Only 5 days remained in Lord’s 6-month vow.

Lord Mahavir walked towards the house where Vasumati was imprisoned. Seeing Lord Mahavir approaching, a smile lit up Vasumati’s face. In enthusiastic tones, she asked Lord Mahavir for alms. With handcuffs on his hands, Lord Mahavir tried to encourage Vasumati. One of his feet was outside and the other inside the threshold.

Almost all conditions of Lord Mahavir’s vow had been fulfilled, but one condition remained. Realizing that his vow was incomplete, Lord Mahavir turned back. Seeing Lord Mahavir turning back, Vasumati was filled with sorrow and pity for her misfortune. She cried and prayed, “Lord, you came to my doorstep and returned empty-handed. Chandanbala’s eyes filled with tears, and there was a sense of joy on her face.

Chandanbala offered alms to Lord Mahavir, and the heavens resounded with the chant of “Aho Dana,” “Aho Dana.” With Chandanbala’s donation, Lord Mahavir’s 6-month vow was fulfilled.

It was this Chandanbala (Vasumati) who became the leader of Lord Mahavir’s 36,000 ascetic group. This step of Lord Mahavir was the first step towards freeing women from servitude. At that time, Lord Mahavir granted women religious rights, and this was the first evidence of its kind in history. Chandanbala became Lord Mahavir’s first disciple and the first ascetic of Jainism. Due to the influence of Lord Mahavir’s penance, the servant class was given the right to live. Chandanbala, after rising on the path of religion, underwent rigorous penance and attained Nirvana (liberation).

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Author: Jain Alerts
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