श्री 1008 विमलनाथ भगवान का परिचय
अगले भगवान | अनन्तनाथ भगवान |
पिछले भगवान | वासुपूज्यनाथ भगवान |
चिन्ह | सूकर/नर सूअर |
पिता | राजा श्री कृतवर्मा |
माता | श्रीमती जयश्यामा |
जन्म स्थान | कम्पिला नगर में |
निर्वाण स्थान | श्री सम्मेद शिखर जी |
रंग | सुवर्ण वर्ण |
पूर्व पर्याय का नाम | राजा श्री पद्मसेन |
वंश | इक्ष्वाकु वंश |
जन्म नक्षत्र | पूर्वाभाद्रपद में |
अवगाहना | साठ धनुष |
आयु | सात लाख वर्ष |
दीक्षा वृक्ष | जामुन का वृक्ष |
प्रथम आहार | नंदपुर नगर में राजा श्री जय कुमार द्वारा खीर का आहर |
क्षेत्रपाल | श्री विमल भक्ति, आराध्य रूचि, बैध रूचि, अव्यायवाध रूचि |
श्री 1008 विमलनाथ भगवान की पंचकल्याणक तिथियां
गर्भ | ज्येष्ठ कृष्णा दशमी |
जन्म | माघ शुक्ल चतुर्थी |
दीक्षा | माघ शुक्ल चतुर्थी |
केवलज्ञान | माघ शुक्ल छठ |
मोक्ष | आषाढ़ कृष्णा अष्टमी |
वैराग्य | आसे के हिमकणों का नाश देखकर |
दीक्षा पालकी | देवदत्ता पालकी |
श्री 1008 विमलनाथ भगवान का समवशरण
शासन यक्ष | पाताल यक्ष |
शासन देवी | वैरोटी देवी |
गणधर | पचपन गणधर |
प्रमुख गणधर | जय नाम के गणधरी (मदरार्य) |
आर्यिकायें | एक लाख तीन हजार आर्यिकायें |
श्रावक | दो लाख श्रावक |
श्राविकायें | चार लाख श्राविकायें |
प्रमुख आर्यिका | गणिनी प्रमुख पद्मा नाम की आर्यिका |
आंसन से मोक्ष गये | खड़गासन |
कौन से कूट से मोक्ष | सुवीर कूट |
विमलनाथ भगवान का परिचय
पश्चिम धातकीखंड द्वीप में मेरू पर्वत से पश्चिम की ओर सीता नदी के दक्षिण तट पर रम्यकावती नाम का एक देश है। उसके महानगर में पद्मसेन राजा राज्य करता था। किसी एक दिन राजा पद्मसेन ने प्रीतिंकर वन में स्वर्गगुप्त केवली के समीप धर्म का स्वरूप जाना और यह भी जाना कि ‘मैं तीसरे भव में तीर्थंकर होऊँगा।’ उस समय उसने ऐसा उत्सव मनाया कि मानों मैं तीर्थंकर ही हो गया हूँ। अनन्तर सोलहकारण भावनाओं द्वारा तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर लिया। अन्त में सहस्रार स्वर्ग में सहस्रार इन्द्र हो गया।
विमलनाथ भगवान का गर्भ और जन्म
इसी भरत क्षेत्र के कांपिल्य नगर में भगवान ऋषभदेव का वंशज कृतवर्मा नाम का राजा राज्य करता था। जयश्यामा उसकी प्रसिद्ध महादेवी थी। उसने ज्येष्ठ कृष्ण दशमी के दिन उनका नाम ‘विमलनाथ’ रखा।
विमलनाथ भगवान का तप
एक दिन भगवान ने हेमन्त ऋतु में बर्पâ की शोभा को तत्क्षण में विलीन होते हुए देखा, जिससे उन्हें पूर्व जन्म का स्मरण हो गया। तत्क्षण ही भगवान विरक्त हो गये। तदनन्तर देवों द्वारा लाई गई ‘देवदत्ता’ पालकी पर बैठकर सहेतुक वन में गये और स्वयं दीक्षित हो गये, उस दिन माघ शुक्ला चतुर्थी थी।
विमलनाथ भगवान का केवलज्ञान और मोक्ष
जब तपश्चर्या करते हुए तीन वर्ष बीत गये, तब भगवान दीक्षावन में जामुन वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ होकर घातिया कर्मों का नाशकर माघ शुक्ल षष्ठी के दिन केवली हो गये। अन्त में सम्मेदशिखर पर जाकर एक माह का योग निरोध कर आठ हजार छह सौ मुनियों के साथ आषाढ़ कृष्ण अष्टमी के दिन सिद्धपद को प्राप्त हो गये।
Shree 1008 Vimalnath Bhagwan Bhagwan‘s Introduction
Next Lord | Anantnath Bhagwan |
Previous Lord | Vasupujyanath Bhagwan |
Sign | Boar/Male Boar |
Father | Raja Shri Kritavarma |
Mother | Mrs. Jaishyama |
Birth place | in kampila city |
Nirvana place | Sammed Shikhar ji |
Color | golden color |
Name of Previous Name | Raja Sri Padmasen |
Lineage | Ikshvaku dynasty |
Birth Nakshatra | in purvabhadrapada |
Height | sixty bows |
Age | seven million years |
initiation tree | jamun tree |
First Diet | Ahar of Kheer by Raja Shri Jai Kumar in Nandpur Nagar |
kshetrapala | Sri Vimal Bhakti, adorable interest, legitimate interest, unworthy interest |
Panchkalyanak dates of Shri 1008 Lord Vimalnath
Conception | Jyeshtha Krishna Dashami |
Birth | Magh Shukla Chaturthi |
Initiation (Diksha) | Magh Shukla Chaturthi |
Attainment of Pure Knowledge (Kevalgyan) | Magh Shukla Chhath |
Liberation (Moksha) | Ashadh Krishna Ashtami |
Renunciation (Vairagya) | Seeing the destruction of nearby snowflakes |
Departure (Diksha Palaki) | Devdutta Palki |
Assimilation/Samavsharan of Shri 1008 of Lord Vimalnath Swami
Yaksha | Paataal Yaksh |
Yakshini | Vairoti Devi |
Ganadhar | fifty five Ganadhar |
Chief Ganadhar | Gandhari (mother) named Jai |
Aryikas | one lakh three thousand Aryans |
Shravaks | two lakh |
Shravikas | four lakhs |
Chief Aryanka | Padma |
Attained salvation through tears | Khadagasana |
Which Koot gives salvation? | Suveer Koot |
Introduction of Lord Vimalnath
There is a country named Ramyakavati on the south bank of the Sita River, west of Mount Meru in the island of Western Dhatikhand. King Padmasen ruled in his metropolis. One day, King Padmasen learned the nature of religion near Swarvagupta Kevali in Pritinkar forest and also came to know that ‘I will be a Tirthankar in the third life.’At that time he celebrated as if he had become a Tirthankara. Later, the Tirthankara bound nature through sixteen causal emotions. At last Sahasrara became Indra in Sahasrara heaven.
Pregnancy and birth of Lord Vimalnath
A king named Kritavarma, a descendant of Lord Rishabhdev, ruled in the city of Kampilya in this Bharat region. Jayshyama was his famous Mahadevi. He named him ‘Vimalnath’ on the day of Jyeshtha Krishna Dashami.
penance of Lord Vimalnath
One day, during the autumn season, the Lord saw the beauty of the snow vanishing instantly, which reminded him of his previous birth. Immediately the Lord became disinterested. Thereafter, sitting on the ‘Devdatta’ palanquin brought by the Gods, Sahetuk went to the forest and got initiated himself. That day was Magh Shukla Chaturthi.
Only knowledge and salvation of Lord Vimalnath
When three years had passed while performing penance, Lord Krishna meditated under the Jamun tree in Dikshavan and after destroying all the bad deeds, he became Kevali on the day of Magh Shukla Shashthi. At last, after reaching Sammed Shikhar and observing yoga for one month, Ashadha along with eight thousand six hundred sages attained Siddhapada on the day of Krishna Ashtami.
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