श्री नमिनाथ भगवान का परिचय

अगले भगवान श्री नेमिनाथ भगवान
पिछले भगवान मुनिसुव्रतनाथ भगवान
चिन्ह नील कमल
पिता राजा विजय
माता महारानी वप्रिला देवी
जन्म स्थान मिथला नगरी में
निर्वाण स्थान श्री सम्मेद शिखर जी
रंग स्वर्ण वर्ण
पूर्व पर्याय का नाम राजा श्री पार्थिक
वंश इक्ष्वाकु वंश
दीक्षा पालकी उत्तरकुरू नामक पालकी
अवगाहना पन्द्रह धनुष
आयु दस हजार वर्ष की
दीक्षा वृक्ष चम्पक वृक्ष के नीचे
प्रथम आहार वीरपुर नगर में दत्त नाम के राजा ने दूध की खीर का
क्षेत्रपाल श्री कपिलजी, श्री वटुकजी, श्री भैरवजी, श्री मल्लकाख्यजी।
श्री नमिनाथ भगवान का परिचय

श्री 1008 नमिनाथ भगवान की पंचकल्याणक तिथियां

गर्भ आश्विन कृष्ण 2
जन्म आषाढ़ कृष्ण 10
दीक्षा आषाढ़ कृष्ण 10
केवलज्ञान मार्गशीर्ष शुक्ल 11
मोक्ष वैशाख कृष्णा 14
वैराग्य जातिस्मरण से
श्री 1008 नमिनाथ भगवान की पंचकल्याणक तिथियां

श्री 1008 नमिनाथ भगवान का समवशरण

शासन यक्ष श्री विद्युत प्रभ यक्ष
शासन देवी श्री चामुण्डी देवी यक्षी
गणधर सत्रह गणधर
प्रमुख गणधर सुप्रभ नाम के गणधर
आर्यिकायें पैंतालीस हजार आर्यिकायें
श्रावक एक लाख श्रावक
श्राविकायें तीन लाख श्राविकायें
प्रमुख आर्यिका  गणिनी प्रमुख मार्गिणी नाम की आर्यिका
आंसन से मोक्ष गये खड़गासन से
कौन से कूट से मोक्ष श्री मित्रधर कूट से
श्री 1008 नमिनाथ भगवान का समवशरण

नमिनाथ भगवान का परिचय

इसी जम्बूद्वीपसम्बन्धी भरतक्षेत्र के वत्स देश में एक कौशाम्बी नाम की नगरी है। उसमें इक्ष्वाकुवंशी ‘पार्थिव’ नाम के राजा रहते थे और उनकी सुंदरी नाम की रानी थी। इन दोनों के सिद्धार्थ नाम का श्रेष्ठ पुत्र था। राजा ने किसी समय सिद्धार्थ पुत्र को राज्यभार देकर जैनेश्वरी दीक्षा ले ली और आयु के अन्त में समाधिमरणपूर्वक स्वर्गस्थ हो गये। पिता के समाधिमरण का समाचार सुनकर राजा सिद्धार्थ विरक्त हो गये। मनोहर नाम के उद्यान में जाकर महाबल नामक केवलीभगवान से धर्म का स्वरूप सुनकर क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर लिया और शान्त संयमी मुनि हो गये। उन्होंने ग्यारह अंग का ज्ञान प्राप्त करके सोलहकारण भावनाओं के बल से तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर लिया। तपश्चरणपूर्वक कर्म की निर्जरा करते हुए अन्त में समाधिमरण करके अपराजित नाम के श्रेष्ठ अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हो गये। वहाँ तेतीस सागर की आयु थी और एक हाथ ऊँचा शरीर था।

नमिनाथ भगवान का गर्भ और जन्म

जम्बूद्वीप के अन्तर्गत बंग देश में मिथिलानगरी है। वहाँ पर ऋषभदेव के वंशज काश्यपगोत्रीय विजय महाराज की रानी का नाम ‘वप्पिला’ था। आश्विन कृष्ण द्वितीया के दिन अश्विनी नक्षत्र में वप्पिला महादेवी के गर्भ में उपर्युक्त अहमिन्द्र का जीव आ गया। आषाढ़ कृष्ण दशमी के दिन स्वाति नक्षत्र में रानी ने तीन ज्ञानधारी पुत्र को जन्म दिया। इन्द्रों ने जन्मोत्सव के बाद पुत्र का नाम ‘नमिनाथ’ रखा। मुनिसुव्रतनाथ के बाद साठ लाख वर्ष के बीत जाने पर ये तीर्थंकर हुए हैं। प्रभु की आयु दस हजार वर्ष की थी और शरीर पन्द्रह धनुष ऊँचा था।

नमिनाथ भगवान का तप

जब कुमार काल के ढाई हजार वर्ष बीत गये, तब उनका राज्याभिषेक हुआ। राज्य करते हुए पाँच हजार वर्ष के बीत जाने पर एक दिन प्रभु वर्षा ऋतु से बादलों के व्याप्त होेने पर उत्तम हाथी पर बैठकर वन विहार को गये थे। उसी समय आकाशमार्ग से दो देवों ने आकर विनयपूर्वक नमस्कार करके कहना शुरू किया कि हे देव! इसी जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में वत्सकावती देश है, उसकी सुसीमा नगरी में अपराजित नाम के तीर्थंकर को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। उस केवलज्ञान की पूजा महोत्सव में हम लोग आये थे। उनकी सभा में प्रश्न हुआ कि क्या इस समय भरतक्षेत्र में कोई तीर्थंकर हैं ? सर्वदर्शी भगवान ने कहा कि हाँ! बंग देश की मिथिला नगरी के राजा नमिनाथ तीर्थंकर होने वाले हैं। इस समय वे देवों द्वारा लाये गये भोगोपभोग का अनुभव करते हुए गृहस्थावस्था में विद्यमान हैं। उन देवों की बात सुनते ही प्रभु नगर में वापस आ गये। विदेहक्षेत्रस्थ अपराजित तीर्थंकर तथा उनके साथ अपने पूर्व भव के सम्बन्ध का स्मरण कर भगवान संसार, शरीर, भोगों से विरक्त हो गये। तत्क्षण ही लौकांतिक देवों ने उन महामना की पूजा की। देवों द्वारा आनीत ‘उत्तरकुरू’ नामक पालकी पर आरूढ़ होकर ‘चैत्रवन’ नामक उद्यान में पहुँचे। वहाँ बेला का नियम लेकर आषाढ़ कृष्णा दशमी के दिन अश्विनी नक्षत्र में सायं के समय एक हजार राजाओं के साथ ‘ नम: सिद्धेभ्य:’ मंत्र का उच्चारण करते हुए दीक्षित हो गये।

नमिनाथ भगवान का केवलज्ञान और मोक्ष

वीरपुर नगर के राजा दत्त ने प्रभु की प्रथम पारणा का लाभ लिया था। छद्मस्थ अवस्था के नव वर्ष बीत जाने पर वे प्रभु एक दीक्षावन में पहुँचकर बेला के नियमपूर्वक वकुल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हो गये। मगसिर शुक्ला एकादशी के दिन सायंकाल में लोकालोकप्रकाशी केवलज्ञान को प्राप्त हो गये।

उनके समवसरण में सुप्रभार्य आदि सत्रह गणधर थे। बीस हजार मुनि, मंगिनी आदि पैंतालीस हजार आर्यिकाएँ, एक लाख श्रावक, तीन लाख श्राविकाएँ थीं। विहार करते हुए एक मास की आयु अवशेष रहने पर भगवान नमिनाथ सम्मेदशिखर पर पहुँच गये। वहाँ एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग में लीन हुए। प्रभु को वैशाख कृष्णा चतुर्दशी के दिन रात्रि के अन्तिम अश्विनी नक्षत्र में सिद्धपद प्राप्त हो गया। देवों ने आकर निर्वाण कल्याणक महोत्सव मनाया। ऐसे वे नमिनाथ तीर्थंकर सदा हमारी रक्षा करें।

Shree 1008 Nami Nath Bhagwan‘s Introduction

Next Lord Sri Neminath Bhagwan
Previous Lord Munisuvratnath Bhagwan
Sign Neelkamal
Father Raja Vijay
Mother Maharani Vaprila Devi
Birth place in mithala city
Nirvana place Sammed Shikhar ji
Color golden color
Name of Previous Name Raja Shree Parthik
Lineage Ikshvaku dynasty
initiation palanquin Palki named Uttarkuru
Height fifteen bows
Age ten thousand years old
initiation tree under the champak tree
First Diet king named Dutt served kheer diet in Veerpur city
kshetrapala Shri Kapilji, Shri Vatukji, Shri Bhairavji, Shri Mallakahyaji.
Shree 1008 Nami Nath Bhagwan‘s Introduction

Panchkalyanak dates of Shree 1008 Nami Nath Bhagwan

Conception Ashwin Krishna 2
Birth Ashadh Krishna 10
Initiation (Diksha) Ashadh Krishna 10
Attainment of Pure Knowledge (Kevalgyan) Margashirsha Shukla 11
Liberation (Moksha) Vaishakh Krishna 14
Renunciation (Vairagya) from caste remembrance
Panchkalyanak dates of Shri 1008 Nami Nath Bhagwan

Assimilation/Samavsharan of Shree 1008 of Lord Nami Nath

Yaksha Shri Vidyut Prabha Yaksha
Yakshini Shri Chamundi Devi Yakshi
Ganadhar seventeen gandharas
Chief Ganadhar Gandhar named Suprabh
Aryikas forty-five thousand Aryankas
Shravaks one lakh listeners
Shravikas three lakh listeners
Chief Aryanka Ganini Aryaka named Margini
Attained salvation through tears from Khadgasana
Which Koot gives salvation? From Shri Mitradhar Koot
Assimilation/Samavsharan of Shri 1008 of Lord Nami Nath

Introduction of Naminath Bhagwan

There is a city named Kaushambi in Vatsa country of Bharat region related to Jambudweep. There lived a king named ‘Parthiv’ of Ikshvaku dynasty and he had a queen named Sundari. Both of them had a great son named Siddharth. At some time, the king gave charge of the kingdom to Siddhartha’s son and took initiation from Jaineshwari and at the end of his life he passed away peacefully.King Siddhartha became sad after hearing the news of his father’s demise. After going to a garden named Manohar and hearing the nature of religion from Lord Kevali named Mahabal, he attained permanent equanimity and became a calm and restrained sage.After acquiring the knowledge of eleven organs, he bound the Tirthankara nature with the power of sixteen causal emotions. By performing penance and severing the karmas, finally attaining Samadhimaran, he became Ahamindra in the best Anuttar plane named Aparajit. Sagar was thirty-three years old and had a body that was one hand high.

Pregnancy and birth of Naminath Bhagwan

Mithila city is in Banga country under Jambudweep. There, the name of the queen of Kashyapagotriya Vijay Maharaj, a descendant of Rishabhdev, was ‘Vappila’. On the day of Ashwin Krishna Dwitiya, in Ashwini Nakshatra, the above mentioned Ahmindra’s soul came into the womb of Vappila Mahadevi. On the day of Ashadh Krishna Dashami, in Swati Nakshatra, the queen gave birth to three knowledgeable sons. Indra named his son ‘Naminath’ after the birth anniversary. After Munisuvratnath, sixty lakh years have passed and these Tirthankaras have emerged.The age of the Lord was ten thousand years and his body was fifteen bows high.

The penance of Lord Naminath

When two and a half thousand years of Kumar’s reign had passed, his coronation took place. After five thousand years of reign had passed, one day when the clouds had spread due to the rainy season, the Lord went for a forest excursion sitting on a beautiful elephant. At the same time, two gods came from the sky and started greeting me politely and saying, O God! Vatsakavati country is in Videha, east of this Jambudweepa,Kevalgyan was born to a Tirthankar named Aparajit in his border city. We had come to that festival of worship of Kevalgyan. A question was raised in his meeting whether there are any Tirthankaras in Bharatkshetra at this time? The omniscient God said yes! Naminath is going to be Tirthankar, the king of Mithila city of Bangladesh. At this time, he is present in the family life, experiencing the pleasures brought by the Gods.As soon as he heard what those gods said, the Lord returned to the city. Remembering the undefeated Tirthankar of Videha Kshetra and his previous relationship with him, the Lord became detached from the world, body and pleasures. Immediately the divine gods worshiped that Mahamana. Mounted on a palanquin named ‘Uttarakuru’, brought by the gods, he reached the garden named ‘Chaitravan’. There, taking the rule of Bela, Ashadh got initiated on Krishna Dashami day in the evening in Ashwini Nakshatra along with a thousand kings by reciting the mantra ‘Namah Siddhebhya’.

Only knowledge and salvation of Lord Naminath

King Dutt of Veerpur city had taken advantage of the first Parana of the Lord. After the completion of the new year of Chhadmastha stage, the Lord reached a Dikshavan and meditated under the Vakul tree as per the rules of Bela. On the day of Magasir Shukla Ekadashi, in the evening Lokalokprakashi attained Kevalgyan.There were seventeen Ganadhars like Suprabharya in his Samavasaran. There were twenty thousand Munis, Manginis etc., forty five thousand Aryikas, one lakh Shravakas, three lakh Shravikas. While travelling, Lord Naminath reached Sammed Shikhar when he had one month left to live.There he got absorbed in Pratimayoga along with a thousand sages. The Lord attained Siddhapad in the last Ashwini Nakshatra of the day and night of Vaishakh Krishna Chaturdashi. The gods came and celebrated the Nirvana Kalyanak Mahotsav. May that Naminath Tirthankar always protect us.

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