हुं प्रभु अनजान छुं, 

मुज भोमियो भगवान तुं, 

भांगतो भागी रह्यो, 

दे थोभवानुं भान तुं…(१)

 

भटकी रह्यो छुं हुं वीराने, 

मार्ग मुजने ना जडे, 

कही रहह्या वहेता पहाडो, 

तुज मही झरणं मळे,

 खळखळे छे जे तळे, 

भीतर भणीनो कान तुं!(२)

 

पाताळथी अंधार शोषी,

 निजने अनोखा रंग दे, 

तारी हवानी एक लहेरे,

 वृक्ष नभने चितरे, 

अंधार आत्म धरा महीं 

हवे बीज प्रकाशी! वाव तुं!(३)

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