दोहा


गुरू गौतम स्वामी नमो, 

जपो सदा दिन रात।

गुरू गौतम के नाम से, 

निशि में होय प्रभात ।।

चौपाई

 

गुरूवर गौतम लब्धि निधाना। 

सुमिरत पावत संपत्ति नाना ।। 1 ।।

 

वीर प्रभु के शिष्य उदारी।

 सकल संघ के है उपकारी।।2।।

 

चमत्कार संयुत गुरूनामा।

 जाप जपो नित आठों यामा।।3।।

 

मेरे मन में गौतमस्वामी।

 रोम रोम में गौतमस्वामी ।। 4 ।।

 

नित उठ वंदू गौतमस्वामी।

 जय हो जय हो गौतमस्वामी ।।5।।

 

श्रमण शिरोमणि गौतमस्वामी। 

ओम् ह्रीँ अर्हम् गौतमस्वामी। ।6।।

 

गौतम नाम अनंत विभूषित। 

ध्यान धरो निज आतम के हित । ।7।।

 

जाप जपत दुख दिन फिर जावे।

 दुख में सुख की बदली आवे ।। 8 ।।

 

वीर प्रभु के पहले गणधर। 

परम लाडले पहले मुनिवर ।।9।।

 

गुव्वर की माटी का हीरा। 

उसे तराशे श्री महावीरा ।।10।।

 

कितना मेरा भाग्य सवाया।

 गौतम हीरा कर में आया।। 11 ||

 

छठ छठ तप के परम तपस्वी।

 सकल जहाँ में परम यशस्वी ।।12।।

 

कर जोडी चरणों में वंदन।

 ताप हरो बरसाओ चंदन ।। 13 ||

 

मैं दुखियारा शरणे आया। 

स्वीकारो गौतम गुरू राया।।14।।

 

सहस सूर्य सम दिव्य प्रकाशा। 

अन्तर का अंधियारा नाशा ।। 15।। 

 

तुझ दर्शन की है अभिलाषा। 

शरणे आया लेकर आशा।। 16।। 

 

इन्द्रभूति का मंत्र महाना।

 खेल खेल में देते ज्ञाना।।17 ।। 

 

हाथ रखा गुरू ने जिस सिर पर। 

वही हो गया सर्व विरति धर।। 18।।

 

 शिष्य हुए सब केवलज्ञानी। 

गौतम गुरु है अवढरदानी।।19 ।।

 

 चाह नहीं केवल की मन में।

 मस्त हुए प्रभु के चरणन में।।20।। 

 

शुरू करना हो अभिनवकामा। 

सुमरो मन से गौतम नामा।। 21।। 

 

पावत निश्चय अमरित सिद्धि। 

चरणों में आलोटे ऋद्धि ।।22 ।। 

 

अमरित निवसे कर अंगूठे।

 गुरू गौतम बादल जिम वूठे। ।23।। 

 

अन्तर का मेटो अंधियारा। 

जीवन ज्योत भरो उजियारा। | 24 ।। 

 

सदा सहारा मुझको तेरा। 

हाथ पकड लो गुरूवर मेरा।।25।। 

 

जय गुरू गौतम जय गुरू गौतम। 

मेरे प्रभु मेरे परमातम ।। 26 ।। 

 

जो गुरूवर का जाप करेगा।

 मन वांछित सुख शांति लहेगा।। 27।। 

 

दोहा


हे गौतम गुरूवर सुनो, 

अन्तर चित्त पुकार।

 किरपा कर देना प्रभो,

 अक्षय सुख भंडार ।। 28 || 

 

सुबह शाम जो नित करे, 

इकतीसे का पाठ।

 तस नर की नैया लहे,

 वर शिवपुर का घाट ।।29 ||

 

 जीवन में मुझको सदा, 

तेरा ही आधार।

 भाव संपदा दीजिये,

 करो सपन साकार ।। 30 ।।

 

 संघ स्थापना दिवस को,

 लिखा छन्द सुखकार। 

कान्ति मणिप्रभ नित करे, 

गुरू गौतम जयकार ।। 31 ।।

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