बस स्वार्थ छे त्यां लगी, सहु पोताना हशे,

ए नहीं होय तो, सहु पराया थई जशे… (१)

 

मोंघेरी आ जीवननी, क्षणो लुंटावीने,

 संबंधो साचव्या मैं, हित मारूं भूलीने,

 छे ऋणानुबंध साजो, बस त्यां लगी जामशे,

ए नहीं होय तो, सहु पराया थई जशे…बस स्वार्थ छे… (२)

 

करूं जेटली कामनां, एथी वधु सांपडे,

 थोडो प्रयत्न करूं ने, सिध्दि सवायी मळे,

पण उदय छे पुण्यनो, त्यां लगी हरखावशे,

 ए नहीं होय तो, सहु पराया थई जशे… बस स्वार्थ छे… (३)

 

आवे कष्टो जो जीवनमां, तो मारी पडखे रहे,

 रहीशुं सदाए तमारा, एवुं भलेने कहे,

पण पाळशे ज्यां लगी, नयनो उघाडा हशे,

 ए नहीं होय तो, सहु पराया थई जशे….बस स्वार्थ छे… (४)

 

निःसीम निःस्वार्थ ने, निरपेक्ष छे स्नेह तारो,

जिनराज आ अवनिमां, तुं एक साचो सहारो,

विश्वास छे प्रशमनो, वैभव मने आपशे,

 जगमां भले ना हो कोई, तुं मने संभाळशे… बस स्वार्थ छे…(५)

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