Sadhvi Ishvari – An Inspiring Jain Story
साध्वी ईश्वरी – साहस और धर्म की प्रेरणादायक कहानी
बारह वर्षों के भीषण अकाल में, सोपारक के जिंदत्त सेठ और उनके परिवार ने भयानक कठिनाइयों का सामना किया। भोजन के अभाव में, परिवार ने विष खाकर अपनी पीड़ा समाप्त करने का निर्णय लिया। परिवार की मुखिया ईश्वरी ने लाख सोने की मुद्राओं के बदले दो मुट्ठी चावल जुटाए। लेकिन जैसे ही वह भोजन में विष मिलाने वाली थीं, आचार्य वज्रसेनसूरी की धर्मसंदेश वाली आवाज गूंजी।
ईश्वरी उनकी बातों से प्रभावित हुईं और उन्होंने परिवार को विष खाने से रोका। आचार्य वज्रसेन ने बताया कि यह घटना अकाल के समाप्त होने का संकेत है। अगले ही दिन अन्न से भरे जहाज बंदरगाह पर पहुंचे और अकाल समाप्त हो गया।
इस चमत्कारी घटना से प्रेरित होकर, परिवार ने सांसारिक सुखों का त्याग कर आचार्य वज्रसेन के मार्गदर्शन में जैन दीक्षा ग्रहण की। उनके चार पुत्रों के नाम पर जैन परंपरा में चार गच्छ प्रसिद्ध हुए।
यह जैन कहानी हमें धर्म और आस्था की शक्ति की प्रेरणा देती है।
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Sadhvi Ishvari – A Tale of Courage and Righteousness
During a twelve-year famine, Jindatt Sheth and his family of Soparak faced extreme hardship. With no food available, the family decided to consume poison and end their suffering. Ishvari, the matriarch, managed to procure two handfuls of rice at the cost of one lakh gold coins. However, just as she was about to mix poison, Acharya Vajrasensuri’s voice echoed, reminding them of righteousness.
Moved by his words, Ishvari refrained from their tragic decision. Acharya Vajrasen revealed that such a moment would signal the end of the famine. Miraculously, food grains arrived the next morning, saving countless lives.
Inspired by this divine intervention, the family renounced worldly pleasures and accepted Jain initiation under Acharya Vajrasen. Their four sons became revered monks, and four sects in Jainism were named after them.
This inspiring Jain story teaches us the power of faith and righteousness.
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