The concept of Six Dravyas (substances) is fundamental in Jain philosophy. Jainism explains the universe as a combination of six eternal substances, which include both living and non-living entities. Let’s dive deeper into the meaning and attributes of these substances.
Table of Contents
What Are the Six Dravyas?
- Jiva (Living beings):
- Consciousness: Jiva is the only substance with consciousness, the ability to know and perceive.
- Attributes: Knowledge, bliss, power, and right belief are the key traits of Jiva.
- Pudgala (Matter):
- Non-living, tangible substances like stones, wood, and karmic matter.
- Pudgala is responsible for the physical body and karmic bonds of Jiva.
- Dharma (Principle of Motion):
- A non-tangible substance that facilitates the motion of Jiva and matter.
- It does not move itself but enables other substances to move.
- Adharma (Principle of Rest):
- Acts as a medium for rest and stability for moving substances.
- Essential for cessation of motion.
- Akasha (Space):
- Provides the location or space for all substances to exist.
- Divided into Loka (universe) and Aloka (non-universe).
- Kala (Time):
- Facilitates changes and transitions in substances, such as aging or transformation.
- Infinite and indivisible.
Core Attributes of the Six Dravyas
Each substance shares common traits called “guna” (attributes):
- Astitva (Eternal existence): Substances cannot be destroyed.
- Vastutva (Functionality): Every substance serves a unique function.
- Dravyatva (Changeability): Substances undergo modifications but retain their essence.
- Prameyatva (Knowability): Substances can be perceived or known.
- Agurulaghutva (Individuality): Substances maintain their unique identity.
- Pradeshatva (Spatiality): Substances occupy some space.
Significance of Six Dravyas in Jainism
- Understanding the Universe: The six dravyas explain the balance between life and matter in the cosmos.
- Karma and Liberation: Karmic matter (a type of pudgala) binds Jiva to the cycle of birth and death (samsara). Understanding dravyas is essential for liberation (moksha).
- Spiritual Practices: Recognizing the principles of motion, rest, and time helps Jains align their actions with universal laws.
FAQs on Six Dravyas
Q1: What is the difference between Jiva and Pudgala?
Jiva is a living, conscious entity, while Pudgala is non-living matter without consciousness.
Q2: Why are Dharma and Adharma considered substances?
They are essential for motion and rest, enabling the dynamic flow of life and matter in the universe.
Q3: What is the role of Akasha in Jainism?
Akasha provides space for the existence and movement of other substances.
Q4: How does Kala influence the soul and matter?
Kala facilitates change, enabling progression, transformation, and decay.
जैन धर्म में छह द्रव्य: सृष्टि के मूल तत्व (Hindi)
जैन धर्म में छह द्रव्य (मूल तत्व) सृष्टि के आधारभूत सिद्धांत हैं। यह अवधारणा बताती है कि ब्रह्मांड छह शाश्वत तत्वों का मिश्रण है। इनमें जीवित और निर्जीव दोनों प्रकार के तत्व शामिल हैं। आइए इनका विस्तार से अध्ययन करें।
क्या हैं छह द्रव्य?
- जीव (Living beings):
- चेतना: जीव ही एकमात्र ऐसा तत्व है जिसमें चेतना होती है।
- गुण: ज्ञान, आनंद, शक्ति और सम्यक् दर्शन इसके मुख्य गुण हैं।
- पुद्गल (पदार्थ):
- पत्थर, लकड़ी और कर्म पदार्थ जैसे निर्जीव तत्व।
- यह जीव के भौतिक शरीर और कर्मबंधन का आधार है।
- धर्म (गति का सिद्धांत):
- एक अमूर्त तत्व जो जीव और पदार्थ की गति को संभव बनाता है।
- यह खुद नहीं चलता, परंतु गति को संभव करता है।
- अधर्म (विश्राम का सिद्धांत):
- गति के रुकने और स्थिरता के लिए माध्यम।
- आकाश (Space):
- सभी तत्वों के अस्तित्व के लिए स्थान प्रदान करता है।
- इसे लोक (ब्रह्मांड) और अलोक (ब्रह्मांड से बाहर) में विभाजित किया गया है।
- काल (Time):
- तत्वों में परिवर्तन और विकास को संभव बनाता है।
छह द्रव्यों के सामान्य गुण
सभी द्रव्य में निम्नलिखित सामान्य गुण पाए जाते हैं:
- अस्तित्व: द्रव्य नष्ट नहीं हो सकता।
- कार्यशीलता: हर द्रव्य का एक विशेष कार्य होता है।
- परिवर्तनशीलता: द्रव्य हमेशा रूप बदलते हैं, परंतु उनका मूल स्वभाव स्थिर रहता है।
- जानने योग्य: हर द्रव्य को जाना जा सकता है।
- व्यक्तित्व: हर द्रव्य अपनी पहचान बनाए रखता है।
- स्थानिकता: द्रव्य किसी न किसी स्थान पर स्थित होता है।
जैन धर्म में छह द्रव्यों का महत्व
- सृष्टि की समझ: छह द्रव्य जीवन और पदार्थ के संतुलन को समझाते हैं।
- मोक्ष प्राप्ति: कर्म पदार्थ (पुद्गल का एक रूप) जीव को जन्म-मरण के चक्र में बाँधता है।
- आध्यात्मिक अभ्यास: गति, विश्राम और समय के सिद्धांतों को पहचानकर जैन धर्म अनुयायी अपने कर्मों को ब्रह्मांडीय नियमों के अनुरूप बनाते हैं।
FAQs: छह द्रव्य पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न 1: जीव और पुद्गल में क्या अंतर है?
जीव एक चेतन तत्व है, जबकि पुद्गल निर्जीव तत्व है।
प्रश्न 2: धर्म और अधर्म को द्रव्य क्यों माना जाता है?
धर्म गति को और अधर्म स्थिरता को संभव बनाते हैं, जो ब्रह्मांड की गति के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न 3: जैन धर्म में आकाश का क्या महत्व है?
आकाश अन्य द्रव्यों के अस्तित्व और गति के लिए स्थान प्रदान करता है।
प्रश्न 4: काल जीव और पदार्थ को कैसे प्रभावित करता है?
काल परिवर्तन और विकास को संभव बनाता है।