Mahavir Jayanti, also known as Mahavir Janma Kalyanak, holds profound significance in Jainism as it commemorates the birth of Lord Mahavira, the 24th Tirthankara. This festival is celebrated with great zeal and devotion by Jains worldwide. Let’s explore the story behind Mahavir Janma Kalyanak and its significance in Jain culture.

Table of Contents

Mahavir Janma Kalyanak Story

The auspicious occasion of Mahavir Janma Kalyanak marks the birth of Lord Mahavira on the midnight of the 6th day of the bright half of Ashadh, 544th year before Vikram Era (600 B.C.). According to Jain scriptures, Mahavira was born to King Siddhartha and Queen Trishla in the city of Kundagrama, now in present-day Bihar, India. The birth of Mahavira was accompanied by 14 auspicious dreams, which were interpreted as a sign of his future greatness.

  1. An elephant
  2. A bull
  3. A lion
  4. Lakshmi, the goddess of wealth
  5. A garland of flowers
  6. The moon
  7. The sun
  8. A flag
  9. A jar filled with water
  10. A lotus-lake
  11. An ocean
  12. A celestial, aerial car
  13. A heap of jewels
  14. Smokeless fire.

Celebrating Mahavir Jayanti

Mahavir Jayanti, or Mahavir Janma Kalyanak, is observed on the 13th day of the rising moon of Chaitra, which typically falls in March or April. Devotees celebrate this day by visiting Jain temples, offering prayers, performing various rituals, and fasting as a mark of respect and devotion to Lord Mahavira. The festival symbolizes the birth of righteousness and enlightenment, reminding believers of the eternal principles of truth, non-violence, and compassion.

The Teachings of Lord Mahavira

Lord Mahavira’s teachings are based on the principles of Satya (truth), Ahimsa (non-violence), Achaurya (non-stealing), Bramhacharya (chastity), and Aparigraha (non-possessiveness). He renounced his princely life at the age of 30 to pursue spiritual truth and enlightenment. Despite facing numerous challenges and hardships during his spiritual journey, Mahavira remained steadfast in his commitment to his principles and teachings.

Significance of Mahavir Jayanti

Mahavir Jayanti holds immense significance in Jain culture as it serves as a reminder of Lord Mahavira’s exemplary life and teachings. It inspires followers to reflect on the values of compassion, non-violence, and self-discipline advocated by Mahavira. The festival also promotes unity, harmony, and peace among communities, fostering a sense of brotherhood and goodwill.

Mahavir Jayanti, or Mahavir Janma Kalyanak, is more than just a festival; it is a celebration of righteousness and spiritual enlightenment. As we commemorate this auspicious occasion, let us imbibe the teachings of Lord Mahavira and strive to lead a life of virtue, compassion, and non-violence.

महावीर जयंती, जिसे महावीर जन्म कल्याणक के रूप में भी जाना जाता है, जैन धर्म में गहरा महत्व रखती है क्योंकि यह 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म का जश्न मनाती है। यह त्यौहार दुनिया भर में जैनियों द्वारा बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। आइए महावीर जन्म कल्याणक के पीछे की कहानी और जैन संस्कृति में इसके महत्व का पता लगाएं।

महावीर जन्म कल्याणक कथा

महावीर जन्म कल्याणक का शुभ अवसर विक्रम संवत (600 ईसा पूर्व) से 544 वें वर्ष, आषाढ़ के शुक्ल पक्ष के 6 वें दिन की मध्यरात्रि को भगवान महावीर के जन्म का प्रतीक है। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार, महावीर का जन्म कुंडग्राम शहर में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर हुआ था, जो अब भारत के वर्तमान बिहार में है। महावीर का जन्म 14 शुभ सपनों के साथ हुआ था, जिनकी व्याख्या उनकी भविष्य की महानता के संकेत के रूप में की गई थी।

  • एक हाथी
  • एक बैल
  • एक सिंह
  • लक्ष्मी, धन की देवी
  • फूल माला
  • चांद
  • सूरज
  • एक ध्वज
  • पानी से भरा एक जार
  • एक कमल-झील
  • एक सागर
  • एक दिव्य, हवाई कार
  • गहनों का ढेर
  • धुआं रहित आग.

महावीर जयंती का उत्सव

महावीर जयंती, या महावीर जन्म कल्याणक, चैत्र के उगते चंद्रमा के 13वें दिन मनाई जाती है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में आती है। भक्त इस दिन को जैन मंदिरों में जाकर, प्रार्थना करके, विभिन्न अनुष्ठान करके और भगवान महावीर के प्रति सम्मान और भक्ति के प्रतीक के रूप में उपवास करके मनाते हैं। यह त्योहार धार्मिकता और ज्ञान के जन्म का प्रतीक है, जो विश्वासियों को सत्य, अहिंसा और करुणा के शाश्वत सिद्धांतों की याद दिलाता है।

भगवान महावीर की शिक्षाएँ

भगवान महावीर की शिक्षाएँ सत्य (सत्य), अहिंसा (अहिंसा), अचौर्य (चोरी न करना), ब्रम्हचर्य (शुद्धता), और अपरिग्रह (अपरिग्रह) के सिद्धांतों पर आधारित हैं। उन्होंने आध्यात्मिक सत्य और ज्ञानोदय की खोज के लिए 30 वर्ष की आयु में अपना राजसी जीवन त्याग दिया। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान कई चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, महावीर अपने सिद्धांतों और शिक्षाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ रहे।

महावीर जयंती का महत्व

जैन संस्कृति में महावीर जयंती का बहुत महत्व है क्योंकि यह भगवान महावीर के अनुकरणीय जीवन और शिक्षाओं की याद दिलाती है। यह अनुयायियों को महावीर द्वारा प्रतिपादित करुणा, अहिंसा और आत्म-अनुशासन के मूल्यों पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। यह त्योहार समुदायों के बीच एकता, सद्भाव और शांति को बढ़ावा देता है, भाईचारे और सद्भावना की भावना को बढ़ावा देता है।

महावीर जयंती, या महावीर जन्म कल्याणक, सिर्फ एक त्योहार से कहीं अधिक है; यह धार्मिकता और आध्यात्मिक ज्ञान का उत्सव है। जैसा कि हम इस शुभ अवसर को मनाते हैं, आइए हम भगवान महावीर की शिक्षाओं को आत्मसात करें और सदाचार, करुणा और अहिंसा का जीवन जीने का प्रयास करें।

You can explore the fascinating stories of all Jain 24 Tirthankaras, Jain Stories Exploring Jain Symbols on the Jain Alerts website. Delve into their lives and teachings to gain insights into Jain philosophy and spirituality.

Shares:
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *