Table of Contents
Introduction
The Shri Sambhavnath Chalisa is a revered devotional hymn dedicated to Lord Sambhavnath, the third Tirthankara in Jainism. This Chalisa, consisting of forty verses, is recited by devotees to seek the blessings of Lord Sambhavnath and to enhance spiritual well-being. In this blog post, we delve into the lyrics of the Shri Sambhavnath Chalisa, explore its meaning, and understand its significance in the Jain faith.
“Shri Sambhavnath Chalisa” Lyrics
Here are the sacred verses of the Shri Sambhavnath Chalisa:
श्री जिनदेव को कर कर वन्दन, जिनवाणी को मन में ध्याय ।
काम असंभव कर दे संभव, समदर्शी संभव जिनराय ।।
जगतपुज्य श्री संभव स्वामी, तीसरे तीर्थंकर हैं नामी ।
धर्म तीर्थ प्रगटाने वाले, भव दुःख दूर भागने वाले ।।
श्रावस्ती नगरी अति सोहे, देवो के भी मनको मोहे ।
मात सुषेणा पिता द्रढ़राज, धन्य हुए जन्मे जिनराज ।।
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी आए, गर्भ कल्याणक देव मनाए ।
पूनम कार्तिक शुक्ल आई, हुई पुन्य प्रगटे जिनराई ।।
तीन लोक में खुशिया छाई, शची प्रभु को लेने आई ।
मेरु पर अभिषेक रचाया, संभव प्रभु शुभ नाम धराया ।।
बिता बचपन यौवन आया, पिता ने राज्याभिषेक कराया ।
मिली रानिया सब अनुरूप, सुख भोगे चवालिस लक्ष पूर्व ।।
एक दिन महल की छत के ऊपर, देखे वन सुषमा मनहर ।
देखा मेघ महल हिमखण्ड, हुआ नष्ट चली वायु प्रचण्ड ।।
तभी हुआ वैराग्य एकदम, गृह्बंधन लगा नागपाश सम ।
करते वस्तु स्वरूप चिंतवन, देव लोकान्तिक करे समर्थन ।।
निज सूत को देकर राज, वन गमन करे जिनराज ।
हुए सवार सिद्धार्थ पालकी, गए राह सहेतुक वन की ।।
मंगसिर शुक्ल पूर्णिमा प्यारी, सहस भूप संघ दीक्षा धारी ।
तजा परिग्रह केश लोंच कर, ध्यान धरा पूरब को मुख कर ।।
धारण कर उस दिन उपवास, वन में ही किया निवास ।
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रमाण, तत्क्षण हुआ मनः पर्याय ज्ञान ।।
प्रथामाहार हुआ मुनिवर का हुआ, धन्य जीवन सुरेन्द्र का ।
पंचाश्चार्यो से देवों के हुए, प्रजा जन सुखी नगर के ।।
चौदह वर्षो की आतम सिद्धि, स्वयं ही उपजी केवल ऋद्धि ।
कृष्ण चतुर्थी कार्तिक सार, समोशरण रचना हितकार ।।
खिरती सुखकारी जिनवाणी, निज भाषा में समझे प्राणी ।
विषयभोग हैं विषसम विषमय, इनमे मत होना तुम तन्मय ।।
तृष्णा बढती हैं भोगो से, काया घिरती हैं रोगों से ।
जिनलिंग से निज को पहचानो, अपना शुद्धातम सरधानो ।।
दर्शन ज्ञान चरित्र बताये, मोक्ष मार्ग एकत्व दिखाये ।
जीवों का सन्मार्ग बताया, भव्यो का उद्धार कराया ।।
गणधर एक सौ पांच प्रभू के, मुनिवर पंद्रह सहस संघ के ।
देवी देव मनुज बहुतेरे, सभा में थे तिर्यंच घनेरे ।।
एक महिना उम्र रही जब, पहुँच गए सम्मेद शिखर तब ।
अचल हुए खडगासन प्रभु, कर्म नाश कर हुए स्वयंभू ।।
चैत सुदी षष्ठी थी न्यारी, धवल कूट की महिमा भारी ।
साठ लाख पूर्व का जीवन, पग में अश्व था शुभ लक्षण।।
चालीसा श्री संभव नाथ, पथ करो श्रद्धा के साथ ।
मनवांछित सब पूरण होवे, अरुणा जनम मरण दुःख खोवे ।।
Meaning of “Shri Sambhavnath Chalisa”
The Shri Sambhavnath Chalisa is a hymn that praises Lord Sambhavnath and highlights his divine attributes and significant life events. The Chalisa narrates the following key points:
- Reverence for Lord Sambhavnath: The hymn begins by expressing reverence and devotion to Lord Sambhavnath, acknowledging his power to transform the impossible into possible and his wisdom in maintaining impartiality.
- Life and Legacy: It recounts Lord Sambhavnath’s birth in the city of Shravasti, his royal lineage, and his ascetic practices. The hymn emphasizes his role as a Tirthankara who brought forth the teachings of Dharma and relieved worldly suffering.
- Spiritual Awakening: The verses describe Lord Sambhavnath’s renunciation of worldly pleasures and his journey towards spiritual enlightenment. It also mentions his meditation and self-realization, which led to his ultimate attainment of Keval Jnana (absolute knowledge).
- Teachings and Impact: The Chalisa concludes by extolling Lord Sambhavnath’s teachings on overcoming material desires and following the path of righteousness to achieve liberation from the cycle of birth and death.
Significance of the “Shri Sambhavnath Chalisa”
The Shri Sambhavnath Chalisa holds significant importance for Jain devotees:
- Spiritual Connection: Reciting this Chalisa helps devotees connect with Lord Sambhavnath, seek his blessings, and gain spiritual insight.
- Purification and Guidance: It serves as a guide for living a life of virtue and morality, aligning with the teachings of Jainism.
- Cultural Heritage: The Chalisa is an integral part of Jain cultural and religious practices, preserving the spiritual heritage and teachings of Lord Sambhavnath.
Conclusion
The Shri Sambhavnath Chalisa is more than just a devotional hymn; it is a source of spiritual guidance and enlightenment. By understanding its lyrics and significance, devotees can deepen their connection with Lord Sambhavnath and follow his teachings to lead a righteous life. Reciting this Chalisa with devotion helps in overcoming life’s challenges and attaining spiritual fulfillment.
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