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Introduction to Shri Parshwanath Chalisa
The Shri Parshwanath Chalisa is a revered devotional hymn dedicated to Lord Parshwanath, the 23rd Tirthankara in Jainism. Recited with devotion, this Chalisa is believed to bring divine blessings, peace, and protection to its devotees. It is a powerful tool for spiritual enhancement and overcoming life’s obstacles.
Lyrics of Shri Parshwanath Chalisa
Doha (Couplet)
बड़ागाँव अतिशय बड़ा, बनते बिगड़े काज।
तीन लोक तीरथ नमहुँ, पार्श्व प्रभु महाराज।।१।।
आदि-चन्द्र-विमलेश-नमि, पारस-वीरा ध्याय।
स्याद्वाद जिन-धर्म नमि, सुमति गुरु शिरनाय।।२।।
Mukta Chhand (Free Verse)
भारत वसुधा पर वसु गुण सह, गुणिजन शाश्वत राज रहे।
सबकल्याणक तीर्थ-मूर्ति सह, पंचपरम पद साज रहे।।१।।
खाण्डव वन की उत्तर भूमी, हस्तिनापुर लग भाती है।
धरा-धन्य रत्नों से भूषित, देहली पास सुहाती है।।२।।
अर्धचक्रि रावण पंडित ने, आकर ध्यान लगाया था।
अगणित विद्याओं का स्वामी, विद्याधर कहलाया था।।३।।
आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का, समवशरण मन भाया था।
अगणित तीर्थंकर उपदेशी, भव्यों बोध कराया था।।४।।
चन्द्रप्रभु अरु विमलनाथ का, यश-गौरव भी छाया था।
पारसनाथ वीर प्रभुजी का, समोशरण लहराया था।।५।।
बड़ागाँव की पावन-भूमी, यह इतिहास पुराना है।
भव्यजनों ने करी साधना, मुक्ती का पैमाना है।।६।।
काल परिणमन के चक्कर में, परिवर्तन बहुबार हुए।
राजा नेक शूर-कवि-पण्डित, साधक भी क्रम वार हुए।।७।।
जैन धर्म की ध्वजा धरा पर, आदिकाल से फहरायी।
स्याद्वाद की सप्त-तरंगें, जन-मानस में लहरायी।।८।।
बड़ागाँव जैनों का गढ़ था, देवों गढ़ा कहाता था।
पाँचों पाण्डव का भी गहरा, इस भूमी से नाता था।।९।।
पारस-टीला एक यहाँ पर, जन-आदर्श कहाता था।
भक्त मुरादें पूरी होतीं, देवों सम यश पाता था।।१०।।
टीले की ख्याती वायु सम, दिग्-दिगन्त में लहरार्इ।
अगणित चमत्कार अतिशय-युत, सुरगण ने महिमा गार्इ।।११।।
शीशराम की सुन्दर धेनु, नित टीले पर आती थी।
मौका पाकर दूध झराकर, भक्ति-भाव प्रगटाती थी।।१२।।
ऐलक जी जब लखा नजारा, कैसी अद्भुत माया है।
बिना निकाले दूध झर रहा, क्या देवों की छाया है।।१३।।
टीले पर जब ध्यान लगाया, देवों ने आ बतलाया।
पारस-प्रभु की अतिशय प्रतिमा, चमत्कार सुर दिखलाया।।१४।।
भक्तगणों की भीड़ भावना, धैर्य बाँध भी फूट पड़ा।
लगे खोदने टीले को सब, नागों का दल टूट पड़ा।।१५।।
भयाकुलित लख भक्त-गणों को, नभ से मधुर-ध्वनी आयी।
घबराओ मत पारस प्रतिमा, शनै: शनै: खोदो भार्इ।।१६।।
ऐलक जी ने मंत्र शक्ति से, सारे विषधर विदा किये।
णमोकार का जाप करा कर, पार्श्व-प्रभू के दर्श लिये।।१७।।
अतिशय दिव्य सुशोभित प्रतिमा, लखते खुशियाँ लहरार्इ।
नाच उठे नर-नारि खुशी से, जय-जय ध्वनि भू नभ छार्इ।।१८।।
मेला सा लग गया धरा, पारस प्रभु जय-जयकारे।
मानव पशुगण की क्या गणना, भक्ती में सुरपति हारे।।१९।।
जब-जब संकट में भक्तों ने, पारस प्रभु पुकारे हैं।
जग-जीवन में साथ न कोर्इ, प्रभुवर बने सहारे हैं।।२०।।
बंजारों के बाजारों में, बड़ेगाँव की कीरत थी।
लक्ष्मण सेठ बड़े व्यापारी, सेठ रत्न की सीरत थी।।२१।।
अंग्रेजों ने अपराधी कह, झूठा दाग लगाया था।
तोपों से उड़वाने का फिर, निर्दय हुकुम सुनाया था।।२२।।
दुखी हृदय लक्ष्मण ने आकर, पारस-प्रभु से अर्ज करी।
अगर सत्य हूँ हे निर्णायक, करवा दो प्रभु मुझे बरी।।२३।।
कैसा अतिशय हुआ वहाँ पर, शीतल हुआ तोप गोला।
गद-गद्-हृदय हुआ भक्तों का, उतर गया मिथ्या-चोला।।२४।।
भक्त-देव आकर के प्रतिदिन, नूतन नृत्य दिखाते हैं।
आपत्ति लख भक्तगणों पर, उनको धैर्य बंधाते हैं।।२५।।
भूत-प्रेत जिन्दों की बाधा, जप करते कट जाती है।
कैसी भी हो कठिन समस्या, अर्चे हल हो जाती है।।२६।।
नेत्रहीन कतिपय भक्तों ने, नेत्र-भक्ति कर पाये हैं।
कुष्ठ-रोग से मुक्त अनेकों, कंचन-काया भाये हैं।।२७।।
दुख-दारिद्र ध्यान से मिटता, शत्रु मित्र बन जाते हैं।
मिथ्या तिमिर भक्ति दीपक लख, स्वाभाविक छंट जाते हैं।।२८।।
पारस कुइया का निर्मल जल, मन की तपन मिटाता है।
चर्मरोग की उत्तम औषधि रोगी पी सुख पाता है।।२९।।
तीन शतक पहले से महिमा, अधुना बनी यथावत् है।
श्रद्धा-भक्ती भक्त शक्ति से, फल नित वरे तथावत् है।।३०।।
स्वप्न सलोना दे श्रावक को, आदीश्वर प्रतिमा पायी।
वसुधा-गर्भ मिले चन्दाप्रभु, विमल सन्मती गहरायी।।३१।।
आदिनाथ का सुमिरन करके, आधि-व्याधि मिट जाती है।
चन्दाप्रभु अर्चे छवि निर्मल, चन्दा सम मन भाती है।।३२।।
विमलनाथ पूजन से विमला, स्वाभाविक मिल जाती है।
पारस प्रभु पारस सम महिमा, वर्द्धमान सुख थाती है।।३३।।
दिव्य मनोहर उच्च जिनालय समवशरण सह शोभित हैं।
पंच जिनालय परमेश्वर के, भव्यों के मन मोहित हैं।।३४।।
बनी धर्मशाला अति सुन्दर, मानस्तम्भ सुहाता है।
आश्रम गुरुकुल विद्यालय यश, गौरव क्षेत्र बढ़ाता है।।३५।।
यह स्याद्वाद का मुख्यालय, यह धर्म-ध्वजा फहराता है।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरण सह, मुक्ती-पथ दरशाता है।।३६।।
तीन लोक तीरथ की रचना, ज्ञान ध्यान अनुभूति करो।
गुरुकुल साँवलिया बाबाजी, जो माँगो दें अर्ज करो।।३७।।
अगहन शुक्ला पंचमि गुरुदिन, विद्याभूषण शरण लही।
स्याद्वाद गुरुकुल स्थापन, पच्चीसों चौबीस भर्इ।।३८।।
शिक्षा मंदिर औषधि शाला, बने साधना केन्द्र हैं।
यथा धर्मार्थ-सुख सधाना, प्रवर्तक आचार्य-प्रेम।।३९।।
साधक धर्म-गुरु साधना, सुखात्मिका वर्तिका।
पारसनाथ योग साधन, विधि पूजा मुक्ति-रिका।।४०।।
तीर्थस्थली धर्ममालिनियाँ, इस स्थल को मानें।
स्वधर्मक ग्रह पर दिव्य महिमा, शक्ति बहनें।।४१।।
Benefits of Reciting Shri Parshwanath Chalisa
- Spiritual Growth: The Chalisa helps in spiritual elevation and attaining a closer connection with Lord Parshwanath.
- Obstacle Removal: It is believed to remove obstacles and challenges in one’s life.
- Peace and Protection: Regular recitation brings peace and divine protection to devotees.
- Fulfillment of Desires: Helps in the fulfillment of personal and spiritual desires.
How to Recite Shri Parshwanath Chalisa
- Prepare a Clean Space: Choose a quiet, clean space for recitation.
- Offer Prayers: Begin with a prayer to Lord Parshwanath for blessings.
- Recite with Devotion: Chant the Chalisa with a devoted heart and clear mind.
- Conclude with Gratitude: End the recitation by expressing gratitude and seeking blessings.
Conclusion
Reciting the Shri Parshwanath Chalisa with devotion can bring immense spiritual benefits, including overcoming obstacles, fulfilling desires, and achieving inner peace. Whether performed at home or in a temple, this powerful hymn serves as a spiritual guide and protector.
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