Uttam Satya (Supreme Truth), celebrated during Paryushana Parva or Daslakshana Parva, is one of the ten supreme virtues in Jainism. Truth (Satya) is the foundation of trust and integrity, and practicing this virtue leads to spiritual growth by aligning the soul with the principles of honesty and non-violence.

उत्तम सत्य (सर्वोत्तम सत्य), जो पर्युषण पर्व या दसलक्षण पर्व के दौरान मनाया जाता है, जैन धर्म के दस सर्वोच्च धर्मों में से एक है। सत्य (सत्य) विश्वास और निष्ठा का आधार है, और इस धर्म का पालन आत्मा को ईमानदारी और अहिंसा के सिद्धांतों से जोड़कर आत्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।

Table of Contents

The Power of Truth | सत्य की शक्ति

Truth is the foundation of faith and simplicity. People often lie due to greed, fear, or self-interest. When someone lies, it disrupts the harmony between their thoughts, words, and actions. Practicing Uttam Satya allows individuals to overcome these negative emotions and align themselves with peace and clarity.

सत्य विश्वास और सरलता का मूल है। लोग अक्सर लोभ, भय या स्वार्थ के कारण असत्य बोलते हैं। जब कोई झूठ बोलता है, तो उसके विचार, वचन और कर्मों के बीच सामंजस्य टूट जाता है। उत्तम सत्य का अभ्यास करने से व्यक्ति इन नकारात्मक भावनाओं को दूर कर शांति और स्पष्टता प्राप्त करता है।

Why Do People Lie? | लोग झूठ क्यों बोलते हैं?

There are several reasons why people lie, but the most common ones are greed and fear. A person lies to fulfill their selfish desires, or they lie out of fear when they feel threatened. Lying might seem like an easy way out of difficult situations, but it leads to inner turmoil and loss of integrity.

लोग कई कारणों से झूठ बोलते हैं, लेकिन सबसे आम कारण लोभ और भय हैं। कोई व्यक्ति अपने स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने के लिए झूठ बोलता है, या जब उसे कोई खतरा महसूस होता है, तो वह डर से झूठ बोल देता है। झूठ बोलना कठिन परिस्थितियों से निकलने का आसान तरीका लग सकता है, लेकिन इससे आंतरिक अशांति और निष्ठा की हानि होती है।

Satya and Ahimsa: Two Sides of the Same Coin | सत्य और अहिंसा: एक ही सिक्के के दो पहलू

Satya (Truth) and Ahimsa (Non-violence) are interconnected. Truth adds beauty to non-violence, and non-violence protects the integrity of truth. Without truth, non-violence loses its essence, and without non-violence, truth becomes harsh and unkind. The balance between these two virtues creates harmony in life.

सत्य (सत्य) और अहिंसा (अहिंसा) एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सत्य अहिंसा को सौंदर्य प्रदान करता है, और अहिंसा सत्य की रक्षा करती है। सत्य के बिना अहिंसा अपनी सार्थकता खो देती है, और अहिंसा के बिना सत्य कठोर और निर्दयी हो जाता है। इन दोनों धर्मों के बीच संतुलन जीवन में सामंजस्य लाता है।

Speak with Compassion | करुणा से बोलें

When practicing Uttam Satya, it is essential to avoid using harsh or hurtful words. Even if the words are true, they should be spoken with kindness and consideration for others’ feelings. Truth, when combined with compassion, brings peace to both the speaker and the listener.

उत्तम सत्य का अभ्यास करते समय कठोर या आहत करने वाले शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। भले ही शब्द सत्य हों, उन्हें करुणा और दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए बोलना चाहिए। जब सत्य करुणा के साथ मिलाया जाता है, तो यह बोलने वाले और सुनने वाले दोनों को शांति प्रदान करता है।

Overcoming Falsehood | असत्य पर विजय

Falsehood is often rooted in emotions like anger, greed, and fear. These emotions drive individuals away from the path of truth. By practicing Uttam Satya, a person can break free from these negative emotions and cultivate a life of honesty and integrity. This leads to inner peace and spiritual advancement.

असत्य का मूल अक्सर क्रोध, लोभ और भय जैसे भावों में होता है। ये भाव व्यक्ति को सत्य के मार्ग से दूर कर देते हैं। उत्तम सत्य का अभ्यास करके व्यक्ति इन नकारात्मक भावों से मुक्त होकर ईमानदारी और निष्ठा का जीवन विकसित कर सकता है। इससे आंतरिक शांति और आत्मिक उन्नति होती है।

Conclusion | निष्कर्ष

Uttam Satya, or supreme truth, teaches us to speak and act with honesty, integrity, and compassion. By practicing this virtue, we align ourselves with the principles of Jainism, promoting peace, trust, and spiritual growth. Truth is the foundation of a virtuous life and a key to self-purification.

उत्तम सत्य, या सर्वोत्तम सत्य, हमें ईमानदारी, निष्ठा और करुणा के साथ बोलने और आचरण करने का पाठ पढ़ाता है। इस धर्म का पालन करके हम जैन धर्म के सिद्धांतों के साथ अपने आप को जोड़ते हैं, जिससे शांति, विश्वास और आत्मिक उन्नति को बढ़ावा मिलता है। सत्य एक धार्मिक जीवन की नींव है और आत्म-शुद्धि की कुंजी है।

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