हे..! में तो पीधा छे रे, घट घट पाणी,

 छतां हजुये ना, तरस छीपाणी… 

साची रे जाणी मैं मारा, गुरुनी वाणी, 

मांगु हवे हुं भेटमां, अलखनी उजाणी..(१)

 

को’ने मुजने ओ साहेब कदी, उज्जवल थाशे आंगण?

शोर्यसफरनो संदेशो मुज, क्यारे थाशे जगजाहेर? 

ऊंडो छे संसारी खाडो, लागे बारेमास उनाडो,

 एमांथी काढो मने..(२)

 

थीजी सोजी छे आ आंखो, आंखे छांयो छे अंधापो, 

तमे आंगळ आपो मने…

को’ने मुजने ओ साहेब कदी, उज्जवल थाशे आंगण? 

चाहुं दुजल हुं दूजल हुं उजवल उडान…(३)

 

मघमघता फूलो भरेला, ऊंची ऊंची झूलो भरेला, 

झगमगता वहेवासे अहीं..

जाणी लीधुं छे ममैं पण, सारा दीसे पण अंदर, 

खदबढ़ता संबंधो अहीं..

को’ने मुजने ओ साहेब, हजु केटली बार छे बाकी? 

थाक हवे वर्ताए गुजने, गंजील छे घणी आधी…(४)

 

आ विलंब शाने कारण? जोती राह आ भीनी पांपण, 

मिलननी आश हले…

सार विनाना सर्वे बंधन, सार भरेलो मारग जंगम,

 चहुं अजवाश हवे..

को’ने मुजने ओ साहेब कदी, उज्जवल थाशे आंगण?(५)

 

पल-पल अहीं मोहना घेरा, भेटमां दे भवना फेरा,

विसामो ना लेवा दे मने…

ऊंचेथी नीचे खेंचे, पेटाळे खूपी दे जे,

सीमाडो न दिसवा दे मने..

को’ने मुजने ओ साहेब, कदी मळशे निरांतनी एक पळ?

धीरज मारी खूठी ना जाये, पंपाळो बनीं वत्सल…(६)

 

पत्र अरजी करतो लावी, हस्ताक्षरथी दीओ सजाली,

बीजुं कैं कल्पे नहीं..

सिद्धिसुखनी आपो चावी, हेतनुं अत्तर एमां लगावी,

बीजुं कैं कल्पे नहीं..

को’ने मुजने ओ साहेब कदी, उज्जवल थाशे आंगण?(७)

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