दीक्षा थकी सर्व गुणो मले छे,

 दीक्षा थकी दोष बधा टळे छे, 

दीक्षा थकी पाप बधा ज छूटे, 

दीक्षा थकी कर्मनी गांठ तूटे…(१)

 

दीक्षा थकी पुण्यनो बंध थाय, 

दीक्षा थकी संवर पण सधाय,

 दीक्षा थकी जीव जोडाय त्यागे,

 दीक्षा थकी तेज अखूट जागे…(२)

 

संयम मंगल छे… जगतमां संयम मंगल छे….

 अंतरमां परमातम, पंच महाव्रत पालन पावन… (३)

 

आज्ञा शिर वहे, खुश रहे, सुख लहे, सत्य कहे, दोष दहे, 

खुश रहे, सुख लहे, सत्य कहे, दोष दहे, दोष दहे, 

आनंद पल पल छे… संयम मंगल छे… 

आनंद पल पल छे, जगतमां संयम मंगल छे…(४)

 

वंदना वंदना संयमने वंदना… 

 व्रतपालन छे भवहारी, व्रतपालन छे सुखकारी,

व्रतपालन वंदना वंदना… 

संयम मंगल छे, जगतमां संयम मंगल छे…(५)

 

परमनी प्रीति घट घट व्यापे, मोहनी एक एक गांठने कापे,

 मन रहे आतम मंत्रना जापे, “देवधिॅ” परमानंद बहु आपे, 

आज्ञा शिर वहे…(६)

 

छोडवा जेवो छे संसार, लेवा जेवुं छे आ संयम,

मेळववा जेवो छे मोक्ष, धर्मना आ त्रण सूत्र अनुपम,

आज्ञा शिर वहे…(७)

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