सुख सामग्री मैं ना चाहुं,

मैं तो चाहुं संगम तेरा,

मांगु गुरुवर, संयम.. करदो अर्पण,

संयम… संयम…(1)

 

गुरुमाँ थामो हाथ ये,

संसार से तर जाउं,

 देदो रजोहरण हाथ में,

वीरपथ में गुम हो जाउं,

 मैं वीर नाम में खो जाऊ….

संयम… संयम…(2)

 

मेरा मन खुशी से गाये,

विरति सरगम,

वैरागी बनके हो जाउं,

गुरु समर्पण,

इस मोह को मैं हराउं,

जिनशासन पे प्राण वारूं,

 साधु जीवन को स्वीकारूं,

जिनराज को मैं निहारूं,

गुरुराज तुमसे जुड़े है सारे नाते…

संयम… संयम….(3)

 

बनके मुसाफ़िर मोक्ष का,

मैं मस्त मगन हो जाउं,

 बैठु नैया वीर की,

भवसागर से तर जाउं,

 मैं वीर नाम में खो जाऊ….

संयम… संयम…(4)

 

ये धवल वेश की जो लगन है,

बढ़ती जाए,

संसार से थी जो प्रीत वो,

घटती जाए,

 ये जो है आपका संयम उपवन,

मेरे जीवन को करदो रोशन,

 अब दीवाना हुआ मन,

और झूम रहा है आतम,

 गुरु आज्ञा का पालन करूं मैं,

सफल हो जीवन,

 संयम… संयम… संयम… संयम…(5)

 

सुख सामग्री मैं ना चाहुं,

मैं तो चाहुं संगम तेरा,

करदो अर्पण, रजोहरण,

हो जाऊँ मैं, गुरु समर्पण….(6)

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