देवलोक सा दीप्ता, संयम कल्पतरु,
खरतरगच्छ की चांदनी, वंदन हेम गरु….
श्रावण सुदि दशमी दिन आयो,
उज्जैनी नगरी सुख पायो,
जगमे जन्म्यो एक सितारों,
फतेहकवर दियो नाम तुम्हारों ॥१॥
चाँद्कवर थी मात तुम्हारी,
रत्नकुक्षि माता मनोहारी,
पिता गेंदमल की बलिहारी,
बेटी हमारी राजकुमारी ॥२॥
सुंदर उज्वल कोमल काया,
भांडावत कुल भाग्य सवाया,
पुण्योदय से तुमको पाया,
जन जन के मन को हरखाया ॥3॥
पाँच वर्ष में छोड़ा घर को,
संयम लेना अब तो मुडाको,
जीवन अर्पण गुरु चरण में,
बीते निशदिन प्रभु स्मरण में ॥४॥
बारह बरस में दीक्षा दीनी,
गुरु अनुभव ने शिष्या किनी,
हेमप्रभा से हुई प्रसिध्दि,
शासन की हो तुम समृध्दि ॥५॥
विनय वैयावच्च ज्ञान साधना,
प्रभु से करते थे नित्य प्रार्थना,
जाप जपे नित श्री गुरुदेवा,
गुरु की करते थे नित सेवा ॥६॥
वाणी तेरी मंगलकारी,
भकों को लगती सुखकारी,
अज्ञानी को ज्ञान सिरखाते,
पंचम गति की राह दिखाते ॥७॥
शिष्याओं की मात समाना,
जड़ चेतन अंतर बतलाना,
देती उनको शीतल छाया,
ऐसी अद्भुत तेरी भाया ॥८॥
घर घर में एक अलख जगाना,
जिनशासन का ध्वज फहराना,
अंतर की थी यहीं भावना,
अणु- परमाणु शिव बन जाना ॥९॥
खूब किया शास्त्रों का मंथन,
जागा जिससे स्व पर चिंतन,
मुरु कृपा से प्रभु मिलेंगे,
दुख दोहग सब दूर टलेंगे ॥१०॥
धन्य धरा वह पाली नगरी,
गाती गाथा आज तुम्हारी,
उपकारी गुरुवर्या हमारी,
धर्म बोध दिया उनको भारी ॥११॥
शासन पति प्रभु वीर का कहना,
श्रमण लेश है तेरा गहना,
बीते आज्ञा में दिल रात्रि,
कहते तुमको प्रखर व्याख्यात्री ॥१२॥
हेम कुशल और अनुभव स्मारक,
शंखेश्वर दादावाडी तारक,
दर्शन वंदन पूजन करते,
फुल अक्षत नैवैध धरते ॥१३॥
शत् शत् वंदन गुरु चरणों में,
श्रध्दा दीप जलाया मन में,
गुरु की भक्ति प्रभु की शक्ति,
देती है करमों से मुक्ति ॥१४॥
जीवन नैया की है सुकानी,
करूणाधारी तारणहारी
गुरूवर्या तुम सबसे न्यारी,
कहते है सब ही नर नारी ॥१५॥
जेठ सुदि सातम के दिन को,
छोड़ चले गुरूवर्या हमको,
दसो दिशा में हा-हा मच गई,
गुरुवर्या प्राणों को तज गई ॥१६॥
जब जब गुरु का नाम है लेते
प्रत्यक्ष दर्शन हमको देते,
प्राणों से लगती है प्यारी,
ऐसी थी गुरुवर्या हमारी ॥९७॥
वृंदावन सा शोभता, गुरु तेरा जीवन,
शिष्याओ से महकता,
संयम का मधुवन ॥१८॥
स्नेह दृष्टि गुरु आपकी,
बरसाना हम-पर,
करू प्रार्थना आपसे,
आ कर तुझ दर पर ॥१९॥
संवत् अड़तालीस दोय हजार,
नगरी अहमदाबाद, रवी गुरु हेम –
विंशिका, करे कल्प शंखनाद ॥२०॥