सद्धर्म जे मुजने मळ्यो,

 ते विश्वमां सौने मळे, 

समजण मने साची मळी, 

तेवी समज सौने मळे,

 कल्याण सहुनुं थाय तेवी, 

भावना मुज मन वसी, 

जो होवे मुज शक्ति इसी, 

सवि जीव करूं शासन रसी…(१)

 

सूत्रो कर्या कंठस्थ में, 

शीखी लीधा सुंदर स्तवन, 

सांभळी धर्मकथा, 

कयुं नवतत्वनुं चिंतन मनन, 

आ ज्ञाननो आचार सौ, 

स्वीकारजो बुद्धि कसी, 

जो होवे मुज शक्ति इसी,

 सवि जीव करूं शासन रसी…(२)

 

वीतरागने भगवान मानुं,

 पंच व्रतधारी गुरु, 

जे मोक्षने नजदीक लावे, 

धर्म ते हैये धरूं, 

दर्शन तणो आचार आ, 

सौ धारजो मन उल्लसी, 

जो होवे मुज शक्ति इसी, 

सवि जीव करूं शासन रसी…(३)

 

हुं पंच महाव्रत, बार व्रत, 

के चौद नियमो आदरूं, 

दीक्षा अने पौषध अने, 

सामायिकनो आदर करूं, 

चारित्रनो आचार सौ, 

धरजो अविरतीथी खसी, 

जो होवे मुज शक्ति इसी, 

सवि जीव करूं शासन रस…(४)

 

आहार संज्ञा जीतवा,

 तप आदरूं शुभ सत्त्वथी, 

जे कष्ट आवे ते सहुं, 

रहुं मुक्त देह ममत्वथी, 

ए धन्य तप आचार सौ,

 स्वीकारजो उर उल्लसी, 

जो होवे मुज शक्ति इसी, 

सवि जीव करूं शासन रसी…(५)

 

सद्धर्मनी आराधना,

 हमेंश विधिपूर्वक करूं, 

शक्ति थकी ओछो अधिक, 

आचार हुं ना आदरूं, 

ए वीर्यनो आवार सौ, 

कोई धारजो हैये हसी,

 जो होवे मुज शक्ति इसी,

 सवि जीव करूं शासन रसी….(६)

 

सद्धर्मनो आनंद ए छे, 

सौथी मोटुं सुख सरस,

 सद्धर्मनो संबंध आ,

 जीवंत रहो वरसो-वरस, 

भगवाननी शकित थकी,

 मुज जीव थयो शासन रसी,

 जो होवे गुज शक्ति इसी,

 सवि जीव करूं शासन रसी…(७)

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