ज्ञान सम्यक मेरा हो गया,

मिथ्याभ्रम का अन्धेरा विलय हो गया ।

दृष्टि एकान्त की ही बनी थी मेरी,

और अनेकान्त से बेखबर मैं रहा

स्याद्वादी सहज हो गया,

ज्ञान में ज्ञान का ज्ञान अब हो गया ॥१॥

माना अपना उसे जो ना अपना हुआ,

जो था अपना उसी से पराया रहा

भेदविज्ञान अब हो गया,

एक अभेद की धारा में, मैं बह गया ॥२॥

वीतरागी प्रभु, वीतरागी गुरु,

मोक्ष की मानो, तैयारी हो गयी शुरू

धन्य नरभव, मेरा हो गया,

राग जाने न जाने कहाँ खो गया ॥३॥

दृष्टि में आतमा भक्ति परमात्मा

ऐसी आराधना हो सिद्धात्मा,

मार्ग ऐसा मुझे मिल गया

मानो भव के भ्रमण के हरण हो गया ॥४॥

ज्ञान सम्यक मेरा हो गया,

मिथ्याभ्रम का अन्धेरा विलय हो गया।

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