कविश्री वृन्दावनदास

(मत्त-गयंद छन्द)

श्रीमत वीर हरें भव-पीर, भरें सुख-सीर अनाकुलताई |
केहरि-अंक अरीकर-दंक, नयें हरि-पंकति-मौलि सुहाई ||
मैं तुमको इत थापत हूं प्रभु! भक्ति-समेत हिये हरषाई |
हे करुणा-धन-धारक देव! इहाँ अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव: भव: वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)

क्षीरोदधि-सम शुचि नीर, कंचन-भृंग भरूं|
प्रभु वेग हरो भवपीर, यातैं धार करूं||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।१।

मलयागिर चंदनसार, केसर-संग घसूं|
प्रभु भव-आताप निवार, पूजत हिय हुलसूं||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय भवाताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।२।

तंदुल सित शशिसम शुद्ध, लीनों थार भरी|
तसु पुंज धरौं अविरुद्ध, पावों शिवनगरी||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।३।

सुरतरु के सुमन समेत, सुमन सुमन प्यारे|
सो मनमथ-भंजन हेत, पूजूँ पद थारे||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वन्सनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।४।

रस रज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी|
पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख अरी||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।

तम खंडित मंडित नेह, दीपक जोवत हूँ|
तुम पदतर हे सुखगेह, भ्रमतम खोवत हूँ||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।६।

हरिचंदन अगर कपूर, चूर सुगंध करा|
तुम पदतर खेवत भूरि, आठों कर्म जरा||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।७।

रितुफल कल-वर्जित लाय, कंचनथार भरूं|
शिवफलहित हे जिनराय, तुम ढिंग भेंट धरूं||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।८।

जल-फल वसु सजि हिम-थार, तन-मन मोद धरूं|
गुण गाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरूं||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।९।

पंचकल्याणक-अर्घ्यावली

(राग टप्पा)

मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा |
गरभ साढ़-सित-छट्ठ लियो थिति, त्रिशला-उर अघहरना ||
सुरि-सुरपति तित सेव करी नित, मैं पूजूँ भवतरना |
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा |
ॐ ह्रीं अषाढ़शुक्ल-षष्ठ्यां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।१।

जनम चैत-सित-तेरस के दिन, कुंडलपुर कन वरना|
सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजूं भवहरना|
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा|
ॐ ह्रीं चैत्र-शुक्ल-त्रयोदश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।२।

मगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना|
नृप-कुमार घर पारन कीनों, मैं पूजूं तुम चरना|
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा|
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्ण-दशम्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।३।

शुक्ल-दशैं-बैसाख दिवस अरि, घाति चतुक क्षय करना|
केवल लहि भवि भवसर तारे, जजूं चरन सुखभरना|
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा|
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्ल-दशम्यां केवलज्ञान-मंडिताय श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।४।

कार्तिक-श्याम-अमावस शिव-तिय, पावापुर तें वरना|
गण-फनिवृन्द जजें तित बहुविध, मैं पूजूं भयहरना|
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा|
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्ण-अमावस्यायां मोक्षमंगल-मंडितायअर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।

जयमाला

(छन्द हरिगीतिका २८ मात्रा)

गणधर अशनिधर चक्रधर, हलधर गदाधर वरवदा|
अरु चापधर विद्या-सु-धर, तिरशूलधर सेवहिं सदा||
दु:खहरन आनंदभरन तारन, तरन चरन रसाल हैं|
सुकुमाल गुन-मनिमाल उन्नत, भाल की जयमाल है||

(छन्द घत्ता)

जय त्रिशलानंदन, हरिकृतवंदन, जगदानंदन चंदवरं|
भवताप-निकंदन, तनकन-मंदन, रहित-सपंदन नयनधरं||

(छन्द त्रोटक)

जय केवलभानु-कला-सदनं, भवि-कोक-विकासन कंज-वनं|
जगजीत महारिपु-मोहहरं, रजज्ञान-दृगांबर चूर करं ||१||

गर्भादिक-मंगल मंडित हो, दु:ख-दारिद को नित खंडित हो|
जगमाँहिं तुम्हीं सतपंडित हो, तुम ही भवभाव-विहंडित हो ||२||

हरिवंश-सरोजन को रवि हो, बलवंत महंत तुम्हीं कवि हो|
लहि केवलधर्म प्रकाश कियो, अब लों सोई मारग राजति हो ||३||

पुनि आप तने गुण माहिं सही, सुर मग्न रहें जितने सबही|
तिनकी वनिता गुन गावत हैं, लय-ताननि सों मनभावत हैं ||४||

पुनि नाचत रंग उमंग भरी, तुव भक्ति विषै पग एम धरी |
झननं झननं झननं झननं, सुर लेत तहाँ तननं तननं ||५||

घननं घननं घन-घंट बजे, दृम दृम दृम दृम मिरदंग सजे |
गगनांगन-गर्भगता सुगता, ततता ततता अतता वितता ||६||

धृगतां धृगतां गति बाजत है, सुरताल रसाल जु छाजत है |
सननं सननं सननं नभ में, इकरूप अनेक जु धारि भ्रमें ||७||

किन्नर-सुरि बीन बजावत हैं, तुमरो जस उज्ज्वल गावत हैं|
करताल विषैं करताल धरें, सुरताल विशाल जु नाद करें ||८||

इन आदि अनेक उछाह भरी, सुर भक्ति करें प्रभुजी तुमरी|
तुमही जगजीवन के पितु हो, तुमही बिन कारन तें हितु हो ||९||

तुमही सब विघ्न-विनाशन हो, तुमही निज-आनंद-भासन हो|
तुमही चित-चिंतित दायक हो, जगमाँहिं तुम्हीं सब-लायक हो ||१०||

तुमरे पन-मंगल माँहिं सही, जिय उत्तम-पुन्य लियो सबही|
हम तो तुमरी शरणागत हैं, तुमरे गुन में मन पागत है ||११||

प्रभु मो-हिय आप सदा बसिये, जबलों वसु-कर्म नहीं नसिये|
तबलों तुम ध्यान हिये वरतों, तबलों श्रुत-चिंतन चित्त रतों ||१२||

तबलों व्रत-चारित चाहतु हों, तबलों शुभभाव सुगाहतु हों|
तबलों सतसंगति नित्त रहो, तबलों मम संजम चित्त गहो ||१३||

जबलों नहिं नाश करों अरि को, शिव नारि वरों समता धरि को|
यह द्यो तबलों हमको जिनजी, हम जाचतु हैं इतनी सुनजी ||१४||

(घत्ता छन्द)

श्रीवीर जिनेशा नमित-सुरेशा, नागनरेशा भगति-भरा|
‘वृन्दावन’ ध्यावें विघन-नशावें, वाँछित पावें शर्म वरा||

ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

(दोहा)

श्री सन्मति के जुगल-पद, जो पूजें धरि प्रीत|
‘वृन्दावन’ सो चतुर नर, लहे मुक्ति नवनीत||
।।इत्याशीर्वाद: पु्ष्पांजलिं क्षिपेत्।।

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Note

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