Jain Bhajan

साधना के रास्ते, आत्मा के वास्ते चल रे राही चल।

मुक्ति की मंजिल मिले, शान्ति की सरसिज खिले।।

चल रे राही चल।।टेक।।

ज्ञान ही अज्ञान था, तो भटकते थे हर जनम।

छल कपट माया में पड़कर, करते रहे हम हर कदम।।

राह हो कल्याण की, हो शरण भगवान की

चल रे राही चल ।।१।।

कौन है अपना यहाँ, किसको पराया हम कहें।

एक की आखों में खुशियां, एक के आँसू बहैं।।।

आत्म मंदिर ले चले, ज्योति से ज्योति जले।

चल रे राही चल ।।२।।

साधना के रास्ते, आत्मा के वास्ते चल रे राही चल।

मुक्ति की मंजिल मिले, शान्ति की सरसिज खिले।।

चल रे राही चल।।टेक।।

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