Jain Bhajan

मैं क्या.. मेरा अस्तित्व क्या.. गुरुवर तेरा ही… नाम लिया…

तेरा आशीर्वाद हमें… मिलता सुबह और शाम रहा…

मैं क्या… मेरा अस्तित्व क्या… गुरुवर तेरा ही नाम लिया…

तेरी ही खुशबू है जीवन में… हम मुरझाये फूल हैं…

सूरज चांद सितारे भी…  तेरे चरणों की धूल हैं…

तीर्थ हो तुम चारों मेरे… आगम तेरे, आचरण में पले…

जाऊं अब मैं शरण कहां… अन्य मुझे नही स्थान मिलें…

मैं क्या… मेरा अस्तित्व क्या… गुरुवर तेरा ही… नाम लिया…

तूने दिया हैं, हमको जनम… तेरा ही करते हम मंथन

ज्ञान की गंगा में अवगाहन हो, मिलते रहे तेरे पावन चरण

जीवन मेरा, पतित था गुरु… तेरी कृपा से पावन बना 

तेरी दयादृष्टि होवे सदा, प्रभु से मैं यही मांगता…

मैं क्या… मेरा अस्तित्व क्या… गुरुवर तेरा ही नाम लिया…

सम्यक्त्व की साधना तुमसे, श्रुत की आराधना तुमसे 

पावन तुमसे रत्नत्रय, धर्म आयतन भी तुमसे 

छत्तीस गुण के धारी हो, जन – जन के उपकारी हो 

जीवन तेरा दर्शन है, स्वाध्याय तप और चिंतन हैं 

मैं क्या… मेरा अस्तित्व क्या… गुरुवर तेरा ही नाम लिया…

भक्ति की सुरताल सरगम है, संगीत मुझसे है ही कहा 

कैसे तेरा… गुणगान करूं… वचनों मैं मेरे शक्ति कहां 

तू तो महिमातीत गुरु… कैसे तेरा व्याख्यान करूं…

मंजिल मेरी पथ भी है तू… लाखों तुझे प्रणाम करूं…

मैं क्या… मेरा अस्तित्व क्या… गुरुवर तेरा ही नाम लिया…

तेरा आशीर्वाद हमें… मिलता सुबह और शाम रहा…

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