Table of Contents
पद्मावती चालीसा का परिचय
पद्मावती चालीसा देवी पद्मावती को समर्पित एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है। देवी पद्मावती भगवान पार्श्वनाथ, जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर की यक्षिणी हैं। इस चालीसा के 40 छंद देवी पद्मावती की महानता और उनके गुणों की प्रशंसा करते हैं। यह चालीसा उनकी कृपा प्राप्त करने और जीवन में सुख-समृद्धि के लिए पाठ किया जाता है।
पद्मावती चालीसा का महत्व
पद्मावती चालीसा के पाठ का विशेष महत्व है:
- आध्यात्मिक सुरक्षा:
देवी पद्मावती को जैन धर्म की रक्षक माना जाता है। उनकी चालीसा पाठ करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं। - मनोकामनाओं की पूर्ति:
भक्तों का विश्वास है कि चालीसा का नियमित पाठ करने से इच्छाएँ पूरी होती हैं। - धर्म पालन की प्रेरणा:
यह चालीसा जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रेरित करती है।
पद्मावती चालीसा के लाभ
- मानसिक शांति:
यह चालीसा तनाव को दूर करके मन को शांत करती है। - बाधाओं का निवारण:
जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने में यह चालीसा सहायक है। - आध्यात्मिक उन्नति:
यह भक्तों की भक्ति को गहरा करती है और जैन धर्म के सिद्धांतों को समझने में मदद करती है।
पद्मावती चालीसा का पाठ कैसे करें?
- शांत स्थान का चयन करें:
पाठ के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें। - स्वच्छता का पालन करें:
पाठ से पहले स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें। - ध्यान मुद्रा में बैठें:
सुखासन या पद्मासन में बैठें और मन को एकाग्र करें। - शुद्ध उच्चारण करें:
चालीसा का पाठ करते समय स्पष्ट और सही उच्चारण करें। - नियमितता बनाए रखें:
इसे अपने दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाएँ। सुबह या शाम को इसका पाठ करना शुभ माना जाता है।
पद्मावती चालीसा दोहा
पार्श्वनाथ भगवान को मन मंदिर में ध्याय
लिखने का साहस करूं चालीसा सुखदाय ||१||
उन प्रभुवर श्री पार्श्व की, यक्षी मात महान
पद्मावति जी नाम है, सर्व गुणों की खान ||२||
जिनशासन की रक्षिका, के गुण वरणू आज
चालीसा विधिवत पढ़े , पूर्ण होय सब काज ||३||
चौपाई
जय जय जय पद्मावति माता, सच्चे मन से जो भी ध्याता ||१||
सर्व मनोरथ पूर्ण करें माँ ,विघ्न सभी भागें पल भर मा ||२||
जिनशासन की रक्षा करतीं,धर्मप्रभावन में रत रहतीं ||३||
श्री धरणेन्द्र देव की भार्या ,दिव्य है माता तेरी काया ||४||
एक बार श्री पार्श्वनाथ जी ,घोर तपस्या में रत तब ही ||५||
संवर देव देख प्रभुवर को,करे स्मरण पूर्व भवों को ||६||
घोरोपसर्ग किया प्रभुवर पर, आंधी,वर्षा ,फेके पत्थर ||७||
अविचल ध्यानारूढ़ प्रभूजी ,आसन कंपा माँ पद्मावति ||८||
यक्ष-यक्षिणी दोनों आये, प्रभु के ऊपर छत्र लगाए ||९||
कर में धारण कर पद्मावति , छत्र लगाएं श्री धरणेन्द्र जी ||१०||
प्रभु को केवलज्ञान हो गया,समवसरण निर्माण हो गया ||११||
संवरदेव बहुत लज्जित था,क्षमा-क्षमा कह द्ववार खड़ा था ||१२||
वह स्थल उस ही क्षण से बस, अहिच्छत्र कहलाए बन्धुवर ||१३||
श्री धरणेन्द्र देव पद्मावति, कहलाए प्प्रभु यक्ष-यक्षिणी ||१४||
बड़ी प्रसिद्धी उन दोनों की,उस स्थल पर भव्य मूरती ||१५||
जो विधिवत तुम पूजन करता,मनवांछा सब पूरी करता ||१६||
धन का इच्छुक धन को पाता , सुत अर्थी सुत पा हर्षाता |१७||
राज्य का अर्थी राज्य को पाए , लौकिक सुख सब ही मिल जाएँ ||१८||
हे माता !तुम सम्यग्द्रष्टी ,मुझ पर हो करूणा की वृष्टी ||१९||
प्रियकारिणि धरणेन्द्र देव की,भक्तों की सब पीड़ा हरतीं ||२०||
जहां धर्म पर संकट आवे, ध्यान आपका कष्ट मिटावे ||२१||
इसी हेतु अनुराग आपसे,जय जय जय स्याद्वाद की प्रगटे ||२२||
दीप दान करते विधान जो,पा निधान अरु तेज पुंज वो ||२३||
तुम भय संकट हरणी माता, नाम से तेरे मिटे असाता ||२४||
एक सहस अठ नाम जपे जो, पुत्र पौत्र धन-धान्य लहे वो ||२५||
कुंकुम अक्षत पुष्प चढ़ावे,कर श्रृंगार भक्त हर्षावे ||२६||
मस्तक पर प्रभु पार्श्व विराजें , ऐसी मूरत मन को साजे ||२७||
मुखमंडल पर दिव्य प्रभा है, नयनों में दिखती करुणा है ||२८||
वत्सलता तव उर से झलके,ब्रम्हण्डिनि सुखमंडिनि वर दे ||२९||
कभी होय जिनधर्म से डिगना,ले लेना माँ अपनी शरणा ||३०||
सम्यग्दर्शन नित दृढ होवे, जिह्वा पर प्रभु नाम ही होवे ||३१||
रोग,शोकअरु संकट टारो, हे माता इक बार निहारो ||३२||
तू माता मैं बालक तेरा, फिर क्यों कर मन होय अधीरा ||३३||
मेरी सारी बात सुधारो, पूर्ण मनोरथ विघ्न विदारो ||३४||
बड़ी आश ले द्वारे आया, सांसारिक दुःख से अकुलाया ||३५||
अगम अकथ है तेरी गाथा, गुण गाऊँ पर शब्द न पाता ||३६||
हे जगदम्बे !मंगलकरिणी ,शीलवती सब सुख की भरिणी ||३७||
चौबिस भुजायुक्त तव प्रतिमा, अतिशायी है दिव्य अनुपमा ||३८||
बार-बार मैं तुमको ध्याऊँ, दृढ सम्यक्त्व से शिवपुर जाऊं ||३९||
जब तक मोक्ष नहीं मैं पाऊँ,श्री जिनधर्म सदा उर लाऊँ ||४०||
दोहा
श्री पद्मावति मात की, भक्ति करे जो कोय
रोग,शोक,संकट टले , वांछा पूरण होय ||१||
कर विधान मंत्रादि अरु श्रंगारादिक ठाठ
जिनशासन की रक्षिका, नित देवें सौभाग्य ||२||
चालीसा चालीस दिन , पढ़े सुने जो प्राणि
‘इंदु‘ मात पद्मावति, भक्तन हित कल्याणि ||३||
यह छंद देवी पद्मावती की महिमा और उनके भगवान पार्श्वनाथ के साथ संबंध का वर्णन करते हैं।
निष्कर्ष
पद्मावती चालीसा का पाठ श्रद्धा और समर्पण के साथ करने से जीवन में शांति, समृद्धि और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह भक्तों को देवी पद्मावती के साथ आध्यात्मिक संबंध बनाने में मदद करती है। इसे अपने जीवन में शामिल करें और देवी की कृपा प्राप्त करें।
Padmavati Chalisa: A Spiritual Guide
Introduction to Padmavati Chalisa
Padmavati Chalisa is a devotional hymn dedicated to Goddess Padmavati, the revered Yakshini (spiritual attendant) of Lord Parshvanatha, the 23rd Tirthankara in Jainism. This Chalisa comprises 40 verses that praise the virtues and benevolence of Goddess Padmavati, seeking her blessings for peace, prosperity, and spiritual upliftment.
Significance of Padmavati Chalisa
Reciting the Padmavati Chalisa holds immense significance for devotees:
- Spiritual Protection: Goddess Padmavati is revered as a protector of the Jain faith, and her Chalisa is believed to shield devotees from obstacles and negative influences.
- Fulfillment of Desires: Devotees believe that sincere recitation of the Chalisa can lead to the fulfillment of righteous desires, including prosperity and well-being.
- Promotion of Dharma: The Chalisa encourages adherence to the principles of Jainism, promoting righteousness and moral conduct.
Benefits of Reciting Padmavati Chalisa
- Mental Peace: Regular recitation calms the mind, reducing stress and anxiety.
- Overcoming Obstacles: It is believed to help in removing hurdles in personal and professional life.
- Spiritual Growth: Enhances devotion and deepens understanding of Jain teachings.
How to Recite Padmavati Chalisa
- Choose a Peaceful Environment: Select a quiet and clean place for recitation, such as a prayer room or a serene corner in your home.
- Maintain Cleanliness: Before recitation, take a bath and wear clean clothes to purify the body and mind.
- Sit in a Comfortable Posture: Sit in a comfortable position with a straight back, either cross-legged on the floor or on a chair, ensuring a calm and focused mind.
- Focus on Pronunciation: Recite the Chalisa with clear pronunciation and devotion, understanding the meaning of each verse.
- Regular Practice: Incorporate the recitation into your daily routine, preferably in the early morning or evening hours.
Conclusion
Reciting the Padmavati Chalisa with devotion and understanding can bring peace, remove obstacles, and lead to spiritual growth. It serves as a guide for devotees to connect with Goddess Padmavati and seek her blessings in their spiritual journey.
Explore our comprehensive Jain Chalisa to deepen your spiritual practice