सरस्वती की पूजा करने, श्री जिनमन्दिर जायेंगे।
भव्य भारती की पूजा में, जीवन सफल बनायेंगे|
श्रुत के आराधन से मन में, ज्ञान की ज्योति जलायेंगे।
पर्यायों को कर विनष्ट हम, निजस्वरूप को पायेंगे॥
अतः करें आह्वान मात का, दृढ़ता हमको दे देना।
सदा रहे बस ध्यान आपका, ये ही सबक हमें देना॥
ॐ ह्रीं श्रीद्रव्यश्रुतषट्खण्डागम ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं ।
ॐ ह्रीं श्रीद्रव्यश्रुतषट्खण्डागम ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ।
ॐ ह्रीं श्रीद्रव्यश्रुतषट्खण्डागम ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधि०|
अष्टक
प्रासुक निर्मल नीर लिये, प्रभु का अभिषेक करायें ।
गंधोदक निजशीश धारकर, प्रभुवाणी चित लावें ॥
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें ।
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें ॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.।
शीतल और सुवासित चंदन, केसर संग घिसायें ।
जिनवाणी का अर्चन करके, अन्तर ताप मिटायें ॥
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें ।
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें ॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय संसारतापविनाशनाय चन्दनं नि.।
चन्द्रकान्ति सम उज्ज्वल, अक्षत लेकर पुंज बनायें ।
श्री जिन आगम पूजन करके, अक्षत पद पा जायें|
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें ।
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें ॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि.।
महा सुगन्धित पुष्प मनोहर, चुनचुन कर ले आयें ।
शारदा माँ को भेंट चढ़ाकर, कामवेग विनशायें ॥
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें ।
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें ॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.।
षट्रसमय नैवेद्य बनाकर, श्रुत अर्चन को लायें ।
श्री जिनवर से करें प्रार्थना, क्षुधा रोग नश जायें ॥
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें ।
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें ॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.।
सुरभित गौघृत शुद्ध भराकर, रतनन दीप जलायें ।
अन्तर-मन भी आलोकित हो, यही भावना भायें ॥
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें ।
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें ॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि.।
दशविध निर्मल गंध मिलाकर, चन्दन चूर्ण बनायें ।
अष्टकर्म दुर्गन्ध दूरकर, आतम को महकायें ॥
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें ॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि.।
मधुर रसीले श्रीफल लेकर, भारती-भेंट चढ़ायें ।
संयम-त्याग का पालन करके, मनुज जन्म फल पायें ॥
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें ।
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें ॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि.।
आकर्षक मनहारी सुन्दर वेष्टन नया बनायें ।
सब ग्रंथों को करें सुरक्षित, धारा ज्ञान बहायें ॥
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें ।
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें ॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय नवीनवस्त्रं समर्पयामि स्वाहा।
जल से फल तक अष्ट द्रव्य ले, वागीश्वरि गुण गायें।
अर्घ चढ़ाकर पद अनर्घ की, प्राप्ति करें सुख पायें॥
श्रुत पंचमी का पर्व सुपावन, सब मिल आज मनायें।
चारों अनुयोगों का पूजन, करके मन हर्षायें॥
ॐ ह्रीं श्रीपरमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय अनर्घपदप्राप्तये अर्घ्यं नि.।
तीर्थंकर गणधर मुनिवर को, झुक-झुक शीश नवायें ।
जिनवाणी से अन्तर्मन का, कर्मकलुष धो जायें ॥
जयमाला
श्रीधरसेनाचार्य गुरु ने दो शिष्यों को दिया सुज्ञान ।
भूतबली अरु पुष्पदंत थे, दोनों शिष्य महागुणवान ||१||
षट्खण्डागम की रचना कर, प्रभुवाणी को अमर किया ।
गजरथ पर आरूढ़ कराकर, सादरश्रुत को नमन किया ॥ २॥
अंकलेश्वर वह परम धाम है, जहाँ ये उत्सव पूर्ण हुआ ।
द्वादशांग में किया समाहित, स्याद्वाद का चूर्ण महा ॥३॥
शुक्ल पंचमी ज्येष्ठ मास की, उत्सव पर्व मनाते हैं ।
श्रुत का पूजन अर्चन करके, शुद्धातम गुण गाते हैं ||४||
मंगलाचरण लिखा है गुरु ने, जो भी षट्खण्डागम में ।
णमोकार यह महा मंत्र है, पूजित हुआ सकल जग में ||५||
घर-घर पाठ करें नर-नारी, बच्चे भी कण्ठस्थ करें ।
निजपद पाने को मुनिवर भी, मंत्र में ही ध्यानस्थ रहें ||६||
वेष्टन नया चढ़ाकर इस दिन, श्रुत की पूजा करते हैं ।
सब ग्रन्थों को धूप दिखाकर, उनकी रक्षा करते हैं ॥७॥
सदा करें श्रुत का आराधन, आत्मसाधना करने को ।
होय निराकुल अंत समय में, कर्म कालिमा हरने को ॥८॥
दर्शन – ज्ञान – चरित तप द्वारा, चारों आराधन पायें ।
‘अरुण’ अन्त में आत्मज्ञान कर, मरण समाधि कर जायें ॥ ९ ॥
ॐ ह्रीं श्री परमद्रव्यश्रुतषट्खण्डागमाय पूर्णार्घ्यं निर्व. स्वाहा ।
दोहा
श्रुत पंचमी के पर्व पर, करें जो श्रुत अभ्यास ।
अनुभव में स्वातम मिले, अन्त समय संन्यास ॥
इत्याशीर्वादः पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्
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Note