प्राचीन गुनियां जी वर्तमान में गुणावां जैन मंदिर प्राचीन काल से ही शुग्गावन के लिए प्रसिद्ध स्थल रहा है।

जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के प्रथम गणधर इंद्रभूति गौतम (गौतम गणधर स्वामी) मुख्य शिष्य थे। जिन्होंने भगवान महावीर के महापरिनिर्वाण के पश्चात बारह वर्षो तक जैन धर्म की आचार्य परम्परा का निर्वाहं किया।

गौतम गणधर स्वामी का जन्म मगध राज्य के गोच्चर गाँव में ब्राह्मण वसुभूति और पृथ्वी के घर हुआ था, वह अपने गोत्र ‘गौतम’ से जाने जाते थे।

दिगम्बर जैन परम्परा में गौतम गणधर का स्थान बहुत ऊँचा है। उनका नाम भगवान महावीर के तुरंत बाद लिया जाता है।

जैसे इस मंत्र में जिक्र किया गया है।

”मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमो गणी।

मंगलं कुन्दकुंदाद्यो, जैन धर्मोऽस्तु मंगलं॥”

जिस दिन भगवान महावीर को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी उसी दिन गौतम गणधर स्वामी को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी ।

इंद्रभूति गौतम को ईस्वी पूर्व 515 में गुणावां जी में ही निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। जहाँ निर्वाण स्थली पर प्राचीन काल से एक बड़े तालाब के बीच आकर्षित सुंदर जलमंदिर बना है।

गुणावां जैन मंदिर

श्री गुणावां जैन मंदिर, नवादा (बिहार) में राजस्थानी शैली में लगे गुलाबी तथा लाल पत्थर के कारीगरी से शोभा आकर्षक लगती है।

मंदिर जी के द्वार , मानस्तंभ, दीवार आदि जगहों पर हरे शुग्गो की चित्रकारी की गई है, और आश्चर्य जनक रूप से मंदिर के गुम्बद में भी प्राचीन समय में निर्माणकर्ताओं द्वारा शुग्गो के रहने का स्थल बनाया गया है। यहाँ आने वाले हर पर्यटक शुग्गो को दाने खिलाते है कहा जाता है दाने खिलाने की यह परंपरा अनेक वर्षों से चली आ रही है।

जैन शास्त्रों में वर्णन भी है कि लोकाकाश में स्थित नंदीश्वरद्वीप में विराजमान आकृत्रिम चैतालय के दर्शन पूजन हेतु महाशुक्र नामक इंद्र तोते पर चढ़कर भगवान को माला अर्पण करने यहाँ आते है और इसके साथ तोते भी भगवान के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य करते है।

  • प्रवीण जैन

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